वे उतनी ही लड़ाकू थीं
जितना कि उनका सेनापति
वे अपनी ख़ूबसूरती से कहीं ज़्यादा ख़तरनाक थीं
अपने जूड़े में उन्होंने
सरहुल और ईचा बा की जगह
साहस का फूल खोंसा था
उम्मीद को उन्होंने
कानों में बालियों की तरह पिरोया था
हक़ की लड़ाई में
उन्होंने बोया था आत्मसम्मान का बीज
उनकी जड़ें गहरी हो रही हैं
फैल रही हैं लतरें
गाँव-दर-गाँव
शहर-दर-शहर
छहुरों से
पगडंडियों से
गलियों से बाहर,
आँगन में गोबर पाथती माँ
सदियों बाद
स्कूल की चौखट पर पहुँची बहन
लोकल ट्रेन से कूदती हुई
दफ़्तर पहुँची पत्नी
और भोर अँधेरे
दौड़-दौड़ कर खेतों की ओर
चौराहें की ओर
आवाज उठाती
सैकड़ों अपरिभाषित रिश्तों वाली औरतें
ख़तरनाक साबित हो रही हैं
दुःस्वप्नों के लिए
उन्होंने अपने जूड़े में
खोंस रखा है साहस का फूल
कानों में उम्मीद को
बालियों की तरह पिरोया है
धरती को सर पर घड़े की तरह ढोए
लचकती हुई चली जा रही हैं
उलगुलान की औरतें
धरती से प्यार करने वालों के लिए
उतनी ही ख़ूबसूरत
और उतनी ही ख़तरनाक
धरती के दुश्मनों के लिए।
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अनुज लुगुन
अनुज लुगुन जन्म 10 जनवरी 1986 को झारखंड के सिमडेगा जिले में हुआ था। इनकी रचनाएँ आदिवासी जीवन पर आधारित हैं, जो कि आदिवासी विमर्श के लिए उल्लेखनीय विषय है। वर्तमान में ये दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय में हिंदी शिक्षक हैं। अनुज लुगुन को 2021 का साहित्य अकादमी का युवा पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। यह सम्मान उन्हें 'बाघ और सुगना मुंडा की बेटी' काव्य के लिए दिया जाएगा। इन्हें भारत भूषण अग्रवाल सम्मान भी मिला है।