वे छूट गयी स्त्रियाँ हैं
जिनकी देह से पोंछा जा रहा है
योद्धाओं का पसीना
एक सभ्यता के ख़ात्मे के बाद
उनकी रक्तरंजित कोख से
मनवांछित नस्ल उगाई जाएगी
वे छूट गयी स्त्रियाँ
अपने स्वप्न में
नदी, समुद्र, पहाड़ लांघती
बेतहाशा भागी जा रही हैं
उनके गोद मे भूख से बिलबिला रहे शिशु हैं
दूध के लिए चिचियाते
लेकिन स्तनों से रक्त की धार निकलती है
वे शिशु उनकी अजन्मी इच्छाएँ हैं
जिन्हें लेकर वे निकल भागी हैं
और अब उन्हें दफ़नाने के लिए
थोड़ी सी ज़मीन तलाश रही हैं
वे स्त्रियाँ
अपनी माँ की भाषा के साथ
अपने पिता के देश में
अपने मालिक की
दीवारों में चुन दी गयी हैं
उनका सूरज आख़िरी बार जाने
किस शहर, किस गली, किस मकान में अस्त हो गया है
वे अपनी क़ब्र से झाँककर देखती हैं
वह सड़क जिसपर पिछली बार
अकेली खिलखिलाती निकल गयी थीं
उन्हें पहली बार फूल थमाने वाले हाथ
काटकर फेंक दिए गए हैं
रौशनी में चूमा था जिसने उनका माथा
उसका सिर चौराहे पर टँगा है
अंतिम बार उनके बचपन के नाम से
पुकारने वाली आवाज़ का
गला रेत दिया गया है
वे याद करती हैं
वह आख़िरी दिन
जब हवा में लहराए थे उनके केश
जब धूप ने उनके चेहरों को चूमा था
वह याद करना चाहती हैं
वह अंतिम क्षण
जब उन्होंने उस देश को
अपना घर बुलाया था।
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रश्मि भारद्वाज
रश्मि भारद्वाज मूलतः मुज़फ़्फ़रपुर, बिहार से हैं। आप हिंदी कविता जगत में मानी हुई व समर्थ कवियित्रियों में से एक हैं। आपकी रचनाएँ व अनुवाद समय-समय पे देश के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। आपसे mail.rashmi11@gmail.com पे बात की जा सकती है।