चिड़िया थी
उड़ा दी गई
बेटी थी
समझा दी गई

फिर कोई न लौटा

मुंडेर पर सूख गया दाना

आँगन के पैर से
खोल ले गया
पाज़ेब कोई

शैलजा पाठक

शैलजा पाठक अल्मोड़ा, उत्तराखंड से हैं और हिंदी कविता जगत की समर्थ कवियित्रयों में से एक हैं। आपकी रचनाएँ समय समय पर देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। इन दिनों आपका काव्य संग्रह ‘मैं एक देह हूँ, फिर एक देहरी’ अपने पाठकों के बीच है।

शैलजा पाठक अल्मोड़ा, उत्तराखंड से हैं और हिंदी कविता जगत की समर्थ कवियित्रयों में से एक हैं। आपकी रचनाएँ समय समय पर देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। इन दिनों आपका काव्य संग्रह ‘मैं एक देह हूँ, फिर एक देहरी’ अपने पाठकों के बीच है।

नवीनतम

मेरे मन का ख़याल

कितना ख़याल रखा है मैंने अपनी देह का सजती-सँवरती हूँ कहीं मोटी न हो जाऊँ खाती

तब भी प्यार किया

मेरे बालों में रूसियाँ थीं तब भी उसने मुझे प्यार किया मेरी काँखों से आ रही

फूल झरे

फूल झरे जोगिन के द्वार हरी-हरी अँजुरी में भर-भर के प्रीत नई रात करे चाँद की

पाप

पाप करना पाप नहीं पाप की बात करना पाप है पाप करने वाले नहीं डरते पाप

तुमने छोड़ा शहर

तुम ने छोड़ा शहर धूप दुबली हुई पीलिया हो गया है अमलतास को बीच में जो