कितने नामों को छूते हो जिह्वा की नोंक से इस तरह
कि मुँह भर जाता हो छालों से
कितने नामों को सहलाते हो उँगलियों की थाप से यूँ
कि पोरों से छूटता हो पसीना
कितने नाम तैरते हैं तुम्हारी स्मृति की नदी में ऐसे
कि डूबने लगता हो तुम्हारा अस्तित्व
कितने नामों को पुकारते हो इतने प्राणों से
कि पाँव के निर्जीव नखों तक पहुँचता हो
तुम्हारे लहू का ताप
कितने नाम चढ़ पाते हैं तुम्हारे हृदय के शिखर तक
जो लहरा सकते हों अपने कटे-फटे स्वप्न की ध्वजा
किसी हठधर्मी विजेता की तरह
तुम्हारी वेदना का शौर्य है वह नाम
तुम्हारी आत्मा की हिचकी
आँखों का सूख चला जल
श्वास की विस्मृत लय
तुम्हारी घायल इच्छाओं के फल की एक फाँक है
वह नाम
तुम्हारे शुष्क कंठ का उपवास है

बाबुषा कोहली
बाबुषा कोहली देश की प्रतीष्ठित कवयित्रियों में से एक हैं. आपकी रचनाएँ समय-समय पर देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं.