कंठ का उपवास

1 min read

कितने नामों को छूते हो जिह्वा की नोंक से इस तरह
कि मुँह भर जाता हो छालों से
कितने नामों को सहलाते हो उँगलियों की थाप से यूँ
कि पोरों से छूटता हो पसीना
कितने नाम तैरते हैं तुम्हारी स्मृति की नदी में ऐसे
कि डूबने लगता हो तुम्हारा अस्तित्व
कितने नामों को पुकारते हो इतने प्राणों से
कि पाँव के निर्जीव नखों तक पहुँचता हो
तुम्हारे लहू का ताप
कितने नाम चढ़ पाते हैं तुम्हारे हृदय के शिखर तक
जो लहरा सकते हों अपने कटे-फटे स्वप्न की ध्वजा
किसी हठधर्मी विजेता की तरह

तुम्हारी वेदना का शौर्य है वह नाम
तुम्हारी आत्मा की हिचकी
आँखों का सूख चला जल
श्वास की विस्मृत लय

तुम्हारी घायल इच्छाओं के फल की एक फाँक है

वह नाम
तुम्हारे शुष्क कंठ का उपवास है

बाबुषा कोहली
+ posts

बाबुषा कोहली देश की प्रतीष्ठित कवयित्रियों में से एक हैं. आपकी रचनाएँ समय-समय पर देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं.

बाबुषा कोहली देश की प्रतीष्ठित कवयित्रियों में से एक हैं. आपकी रचनाएँ समय-समय पर देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं.