बोलने में कम से कम बोलूँ

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विनोद कुमार शुक्ल

बोलने में कम से कम बोलूँ
कभी बोलूँ, अधिकतम न बोलूँ
इतना कम कि किसी दिन एक बात
बार-बार बोलूँ
जैसे कोयल की बार-बार की कूक
फिर चुप।

मेरे अधिकतम चुप को सब जान लें
जो कहा नहीं गया, सब कह दिया गया का चुप।
पहाड़, आकाश, सूर्य, चंद्रमा के बरक्स
एक छोटा सा टिम-टिमाता
मेरा भी शाश्वत छोटा-सा चुप।

ग़लत पर घात लगाकर हमला करने के सन्नाटे में
मेरा एक चुप –
चलने के पहले
एक बंदूक का चुप।

और बंदूक जो कभी नहीं चली
इतनी शांति का
हमेशा-की मेरी उम्मीद का चुप।

बरगद के विशाल एकांत के नीचे
सम्हाल कर रखा हुआ
जलते दिये का चुप।

भीड़ के हल्ले में
कुचलने से बचा यह मेरा चुप,
अपनों के जुलूस में बोलूँ
कि बोलने को सम्हालकर रखूँ का चुप।

विनोद कुमार शुक्ल

विनोद कुमार शुक्ल हिंदी के प्रसिद्ध कवि और उपन्यासकार हैं। कई सम्मानों से सम्मानित विनोद कुमार शुक्ल को उपन्यास 'दीवार में एक खिड़की रहती थी' के लिए वर्ष 1999 का 'साहित्य अकादमी' पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।

विनोद कुमार शुक्ल हिंदी के प्रसिद्ध कवि और उपन्यासकार हैं। कई सम्मानों से सम्मानित विनोद कुमार शुक्ल को उपन्यास 'दीवार में एक खिड़की रहती थी' के लिए वर्ष 1999 का 'साहित्य अकादमी' पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।

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