मेरी कुंठा
रेशम के कीड़ों-सी
ताने-बाने बुनती,
तड़प तड़पकर
बाहर आने को सिर धुनती,
स्वर से
शब्दों से
भावों से
औ’ वीणा से कहती-सुनती,
गर्भवती है
मेरी कुंठा – कुँवारी कुंती!
बाहर आने दूँ
तो लोक-लाज मर्यादा
भीतर रहने दूँ
तो घुटन, सहन से ज़्यादा,
मेरा यह व्यक्तित्व
सिमटने पर आमादा।
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दुष्यंत कुमार
दुष्यंत कुमार त्यागी (27 सितंबर 1931 - 30 दिसंबर 1975) हिन्दी कवि , कथाकार और ग़ज़लकार थे। दुष्यंत को हिंदी ग़ज़ल का सशक्त हस्ताक्षर माना जाता है।