भौजी, डोल हाथ में टाँगे मत जाओ नल पर पानी भरने तुम्हारा डोलता है पेट झूलता है अन्दर बँंधा हुआ बच्चा गली बहुत रुखड़ी है। गड़े हैं कंकड़-पत्थर दोनों हाथों से लटके हुए डोल अब और तुम्हें खींचेंगे धरती पर झोर देंगे देह की नसें उकस जाएँगी हड्डियाँ ऊपर-नीचे डोलेगा पेट और थक जाएगा बउआ भैया से बोलो बैठा दें कहीं से घर के आँगन में नल तुम कैसे नहाओगी सड़क के किनारे लोगों के बीच कैसे किस पाँव पर खड़ी रह पाओगी तुम देर-देर तक तुम कितना झुकोगी देह को कितना मरोड़ोगी घर के छोटे दरवाजे में तुम फिर गिर जाओगी कितनी कमजोर हो गई हो तुम जामुन की डाल-सी भौजी, हाथ में डोल लिये मत जाना नल पर पानी भरने तुम गिर जाओगी और बउआ…
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अरुण कमल
अरुण कमल (जन्म-15 फरवरी, 1954) आधुनिक हिन्दी साहित्य में समकालीन दौर के प्रगतिशील विचारधारा संपन्न, अकाव्यात्मक शैली के ख्यात कवि हैं। साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त कवि ने कविता के अतिरिक्त आलोचना भी लिखी है, अनुवाद कार्य भी किये हैं तथा लंबे समय तक वाम विचारधारा को फ़ैलाने वाली साहित्यिक पत्रिका आलोचना का संपादन भी किया है।