यातना देने के काम आती है देह

1 min read
कविता : यातना देने के काम आती है देह

देह प्रेम के काम आती है
वह यातना देने और सहने के काम आती है
देह है तो राज्य और धर्म को दंड देने में सुविधा होती है
पीटने में जला देने में
आत्मा को तबाह करने के लिए कई बार
देह को अधीन बनाया जाता है
बाज़ार भी करता है यह काम
वह देह को इतना सजा देता है कि
उसे सामान बना देता है
बहुत दुःख की तुलना में
बहुत सुख से ख़त्म होती है आत्मा

देवी प्रसाद मिश्र

देवी प्रसाद मिश्र (जन्म - 1958) हिंदी के अग्रणी कवियों में से एक हैं. आपको 1987 के भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. प्रार्थना के शिल्प में नहीं आपकी प्रमुख कृति है.

देवी प्रसाद मिश्र (जन्म - 1958) हिंदी के अग्रणी कवियों में से एक हैं. आपको 1987 के भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. प्रार्थना के शिल्प में नहीं आपकी प्रमुख कृति है.

नवीनतम

मेरे मन का ख़याल

कितना ख़याल रखा है मैंने अपनी देह का सजती-सँवरती हूँ कहीं मोटी न हो जाऊँ खाती

तब भी प्यार किया

मेरे बालों में रूसियाँ थीं तब भी उसने मुझे प्यार किया मेरी काँखों से आ रही

फूल झरे

फूल झरे जोगिन के द्वार हरी-हरी अँजुरी में भर-भर के प्रीत नई रात करे चाँद की

पाप

पाप करना पाप नहीं पाप की बात करना पाप है पाप करने वाले नहीं डरते पाप

तुमने छोड़ा शहर

तुम ने छोड़ा शहर धूप दुबली हुई पीलिया हो गया है अमलतास को बीच में जो