विचार आते हैं

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विचार आते हैं
लिखते समय नहीं
बोझ ढोते वक़्त पीठ पर
सिर पर उठाते समय भार
परिश्रम करते समय
चांद उगता है व
पानी में झलमलाने लगता है
हृदय के पानी में

विचार आते हैं
लिखते समय नहीं
पत्थर ढोते वक़्त
पीठ पर उठाते वक़्त बोझ
साँप मारते समय पिछवाड़े
बच्चों की नेकर फचीटते वक़्त

पत्थर पहाड़ बन जाते हैं
नक्शे बनते हैं भौगोलिक
पीठ कच्छप बन जाती है
समय पृथ्वी बन जाता है…

गजानन माधव 'मुक्तिबोध'
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गजानन माधव 'मुक्तिबोध' (1917 - 1964) की प्रसिद्धि प्रगतिशील कवि के रूप में है. हिन्दी साहित्य में सर्वाधिक चर्चा के केन्द्र में रहने वाले मुक्तिबोध कहानीकार भी थे और समीक्षक भी. उन्हें प्रगतिशील कविता और नयी कविता के बीच का एक सेतु भी माना जाता है.

गजानन माधव 'मुक्तिबोध' (1917 - 1964) की प्रसिद्धि प्रगतिशील कवि के रूप में है. हिन्दी साहित्य में सर्वाधिक चर्चा के केन्द्र में रहने वाले मुक्तिबोध कहानीकार भी थे और समीक्षक भी. उन्हें प्रगतिशील कविता और नयी कविता के बीच का एक सेतु भी माना जाता है.

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