मेरे बाद
वे उन छातियों से भी
लगकर रोई होंगी
जो मेरी नहीं थीं
दूसरे चुंबन भी जगे होंगे
उनके होंठों पर
दूसरे हाथों ने भी जगाया होगा
उनकी हथेलियों को
उनकी लोहे सी गरम नाक की
नोक ने
और गरदनों को भी दागा होगा
उन्होंने फिर धरी होगी
मछली की देह
किसी और के पानी में
वे किसी और के तपते
जीवन में भी पड़ी होंगी
पहली बारिश की बूँद सी
उनके सुंदर कुचों ने फिर दी होगी
उठते हिमालय को चुनौती
मुझे नहीं पता
लेकिन चाँद सुलगता रहा होगा
और
समुद्र ने अपने ही
अथाह जल में डूबकर
जरूर की होगी
आत्महत्या की कोशिश
जब उन्हें पता चला होगा।
संबंधित पोस्ट:

घनश्याम कुमार देवांश
घनश्याम कुमार देवांश गोंडा, उत्तर प्रदेश से हैं और हिंदी साहित्य जगत में उभरते हुए नामों में से एक हैं। इन दिनों आपका पहला काव्य संग्रह ‘आकाश में देह’ अपने पाठकों के बीच है। आपसे ghanshyamdevansh@gmail पे बात की जा सकती है।