उतनी दूर मत ब्याहना बाबा!

बाबा! मुझे उतनी दूर मत ब्याहना जहाँ मुझसे मिलने जाने ख़ातिर घर की बकरियाँ बेचनी पड़े तुम्हें मत ब्याहना उस देश में जहाँ आदमी से ज़्यादा ईश्वर बसते हों जंगल नदी पहाड़

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अपनी अपनी दौलत

पुराने ज़मींदार का पसीना छूट गया, यह सुनकर कि इनकम टैक्स विभाग का कोई अफ़सर आया है और उनके हिसाब–किताब के रजिस्टरऔर बही–खाते चेक करना चाहता है. अब क्या होगा मुनीम जी?

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पूर्व प्रेमिकाएँ

मेरे बाद वे उन छातियों से भी लगकर रोई होंगी जो मेरी नहीं थीं दूसरे चुंबन भी जगे होंगे उनके होंठों पर दूसरे हाथों ने भी जगाया होगा उनकी हथेलियों को उनकी

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सोख न लेना पानी

सूरज ! सोख न लेना पानी ! तड़प तड़प कर मर जाएगी मन की मीन सयानी ! सूरज, सोख न लेना पानी ! बहती नदिया सारा जीवन साँसें जल की धारा जिस पर तैर रहा नावों-सा

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कविता के भ्रम में

क्या तुम कविता की तरफ़ जा रहे हो ? नहीं, मैं दीवार की तरफ़ जा रहा हूँ । फिर तुमने अपने घुटने और अपनी हथेलियाँ यहाँ क्यों छोड़ दी हैं ? क्या तुम्हें चाकुओं

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चीख से उतर कर

मेरे हाथ में एक कलम है जिसे मैं अक्सर ताने रहता हूँ हथगोले की तरह फेंक दूँ उसे बहस के बीच और धुँआ छँटने पर लड़ाई में कूद पड़ूँ – कोई है

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