बाबा! मुझे उतनी दूर मत ब्याहना जहाँ मुझसे मिलने जाने ख़ातिर घर की बकरियाँ बेचनी पड़े तुम्हें मत ब्याहना उस देश में जहाँ आदमी से ज़्यादा ईश्वर बसते हों जंगल नदी पहाड़
बाबा! मुझे उतनी दूर मत ब्याहना जहाँ मुझसे मिलने जाने ख़ातिर घर की बकरियाँ बेचनी पड़े तुम्हें मत ब्याहना उस देश में जहाँ आदमी से ज़्यादा ईश्वर बसते हों जंगल नदी पहाड़
Moreजब से क़रीब हो के चले ज़िंदगी से हम ख़ुद अपने आइने को लगे अजनबी से हम कुछ दूर चल के रास्ते सब एक से लगे मिलने गए किसी से मिल आए
Moreजैसी कहावत है, यह पिछली नशे की रात के बाद का सवेरा था. जब मैं पी के औंधा हो रहा था. एक ऐसा अनुभव जो हमेशा याद रहता है और जिसके कारण
Moreपुराने ज़मींदार का पसीना छूट गया, यह सुनकर कि इनकम टैक्स विभाग का कोई अफ़सर आया है और उनके हिसाब–किताब के रजिस्टरऔर बही–खाते चेक करना चाहता है. अब क्या होगा मुनीम जी?
Moreमेरे बाद वे उन छातियों से भी लगकर रोई होंगी जो मेरी नहीं थीं दूसरे चुंबन भी जगे होंगे उनके होंठों पर दूसरे हाथों ने भी जगाया होगा उनकी हथेलियों को उनकी
Moreसूरज ! सोख न लेना पानी ! तड़प तड़प कर मर जाएगी मन की मीन सयानी ! सूरज, सोख न लेना पानी ! बहती नदिया सारा जीवन साँसें जल की धारा जिस पर तैर रहा नावों-सा
Moreक्या तुम कविता की तरफ़ जा रहे हो ? नहीं, मैं दीवार की तरफ़ जा रहा हूँ । फिर तुमने अपने घुटने और अपनी हथेलियाँ यहाँ क्यों छोड़ दी हैं ? क्या तुम्हें चाकुओं
Moreये असंगति ज़िन्दगी के द्वार सौ सौ बार रोयी बांह में है और कोई चाह में है और कोई साँप के आलिंगनों में मौन चन्दन तन पड़े हैं सेज के सपनों भरे
Moreमेरे हाथ में एक कलम है जिसे मैं अक्सर ताने रहता हूँ हथगोले की तरह फेंक दूँ उसे बहस के बीच और धुँआ छँटने पर लड़ाई में कूद पड़ूँ – कोई है
More1. उम्मीद की उपज उठो वत्स! भोर से ही जिंदगी का बोझ ढोना किसान होने की पहली शर्त है धान उगा प्राण उगा मुस्कान उगी पहचान उगी और उग रही उम्मीद की
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