ये असंगति ज़िन्दगी के द्वार सौ सौ बार रोयी
बांह में है और कोई चाह में है और कोई
साँप के आलिंगनों में
मौन चन्दन तन पड़े हैं
सेज के सपनों भरे कुछ
फूल मुर्दों पर चढ़े हैं
ये विषमता भावना ने सिसकियाँ भरते समोई
देह में है और कोई, नेह में है और कोई
स्वप्न के शव पर खड़े हो
मांग भरती हैं प्रथाएं
कंगनों से तोड़ हीरा
खा रहीं कितनी व्यथाएं
ये कथाएं उग रही हैं नागफन जैसी अबोई
सृष्टि में है और कोई, दृष्टि में है और कोई
जो समर्पण ही नहीं हैं
वे समर्पण भी हुए हैं
देह सब जूठी पड़ी है
प्राण फिर भी अनछुए हैं
ये विकलता हर अधर ने कंठ के नीचे सँजोई
हास में है और कोई, प्यास में है और कोई

भारत भूषण
भारत भूषण का जन्म मेरठ, उत्तरप्रदेश में हुआ। इन्होंने हिन्दी में स्नातकोत्तर शिक्षा अर्जित की और प्राध्यापन को जीविकावृत्ति के रूप में अपनाया। एक शिक्षक के तौर पर करियर की शुरुआत करने वाले भारत भूषण बाद में काव्य की दुनिया में आए और छा गए। उनकी सैकडों कविताओं व गीतों में सबसे चर्चित राम की जलसमाधि रही। उन्होंने तीन काव्य संग्रह लिखे। पहला सागर के सीप वर्ष 1958 में, दूसरा ये असंगति वर्ष 1993 में और तीसरा मेरे चुनिंदा गीत वर्ष 2008 में प्रकाशित हुआ। वर्ष 1946 से मंच से जुडने वाले भारत भूषण मृत्यु से कुछ महीनों पूर्व तक मंच से गीतों की रसधार बहाते रहे। उन्होंने महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर जैसे कवि-साहित्यकारों के साथ भी मंच साझा किया। दिल्ली में 27 फरवरी, 2011 को आयोजित कवि सम्मेलन में उन्होंने अंतिम बार भाग लिया था।