हो काल गति से परे चिरंतन, अभी यहाँ थे अभी यही हो। कभी धरा पर कभी गगन में, कभी कहाँ थे कभी कहीं हो। तुम्हारी राधा को भान है तुम, सकल चराचर
कितना ख़याल रखा है मैंने अपनी देह का सजती-सँवरती हूँ कहीं मोटी न हो जाऊँ खाती हूँ रूखी-सूखी कहीं कमज़ोर न हो जाऊँ पीती हूँ फलों का रस अपनी देह का ख़याल
Moreमेरे बालों में रूसियाँ थीं तब भी उसने मुझे प्यार किया मेरी काँखों से आ रही थी पसीने की बू तब भी उसने मुझे प्यार किया मेरी साँसों में थी, बस, जीवन-गन्ध
Moreसईउ नी मेरे गल लग रोवो नी मेरी उमरा बीती जाए उमरा दा रंग कच्चा पीला निस दिन फिट्टदा जाए सईउ नी मेरे गल लग्ग रोवो नी मेरी उमर बीती जाए ।
Moreहम सब एक सीधी ट्रेन पकड़ कर अपने अपने घर पहुँचना चाहते हम सब ट्रेनें बदलने की झंझटों से बचना चाहते हम सब चाहते एक चरम यात्रा और एक परम धाम हम
Moreवो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है उसी के दम से रौनक आपके बंगले में आई है इधर एक दिन की आमदनी का औसत है चवन्नी का उधर लाखों
Moreतूफ़ानी लहरें हों अम्बर के पहरे हों पुरवा के दामन पर दाग़ बहुत गहरे हों सागर के माँझी मत मन को तू हारना जीवन के क्रम में जो खोया है, पाना है
Moreमेरे बाद वे उन छातियों से भी लगकर रोई होंगी जो मेरी नहीं थीं दूसरे चुंबन भी जगे होंगे उनके होंठों पर दूसरे हाथों ने भी जगाया होगा उनकी हथेलियों को उनकी
Moreमुझसे पहली-सी मुहब्बत मिरे महबूब न माँग मैनें समझा था कि तू है तो दरख्शां है हयात तेरा ग़म है तो ग़मे-दहर का झगड़ा क्या है तेरी सूरत से है आलम में
Moreप्रेम का आविष्कार करती औरतों ने ही कहा होगा फूल को फूल और चांद को चांद हवा में महसूस की होगी बेली के फूल की महक उन औरतों ने ही पहाड़ को
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