मेरे मन का ख़याल

कितना ख़याल रखा है मैंने अपनी देह का सजती-सँवरती हूँ कहीं मोटी न हो जाऊँ खाती हूँ रूखी-सूखी कहीं कमज़ोर न हो जाऊँ पीती हूँ फलों का रस अपनी देह का ख़याल

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तब भी प्यार किया

मेरे बालों में रूसियाँ थीं तब भी उसने मुझे प्यार किया मेरी काँखों से आ रही थी पसीने की बू तब भी उसने मुझे प्यार किया मेरी साँसों में थी, बस, जीवन-गन्ध

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मेरी उमरा बीती जाए

सईउ नी मेरे गल लग रोवो नी मेरी उमरा बीती जाए उमरा दा रंग कच्चा पीला निस दिन फिट्टदा जाए सईउ नी मेरे गल लग्ग रोवो नी मेरी उमर बीती जाए ।

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घर पहुँचना

हम सब एक सीधी ट्रेन पकड़ कर अपने अपने घर पहुँचना चाहते हम सब ट्रेनें बदलने की झंझटों से बचना चाहते हम सब चाहते एक चरम यात्रा और एक परम धाम हम

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उड़ानें

कवि मरते हैं जैसे पक्षी मरते हैं गोधूलि में ओझल होते हुए ! सिर्फ़ उड़ानें बची रह जाती हैं दुनिया में आते ही क्यों हैं जहाँ इन्तज़ार बहुत और साथ कम स्त्रियाँ जब

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वो जिसके हाथ में छाले हैं

वो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है उसी के दम से रौनक आपके बंगले में आई है इधर एक दिन की आमदनी का औसत है चवन्नी का उधर लाखों

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फिर बसंत आना है

तूफ़ानी लहरें हों अम्बर के पहरे हों पुरवा के दामन पर दाग़ बहुत गहरे हों सागर के माँझी मत मन को तू हारना जीवन के क्रम में जो खोया है, पाना है

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पूर्व प्रेमिकाएँ

मेरे बाद वे उन छातियों से भी लगकर रोई होंगी जो मेरी नहीं थीं दूसरे चुंबन भी जगे होंगे उनके होंठों पर दूसरे हाथों ने भी जगाया होगा उनकी हथेलियों को उनकी

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मुझ से पहली सी मोहब्बत

मुझसे पहली-सी मुहब्बत मिरे महबूब न माँग मैनें समझा था कि तू है तो दरख्शां है हयात तेरा ग़म है तो ग़मे-दहर का झगड़ा क्या है तेरी सूरत से है आलम में

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