आत्मग्लानि का कोई रंग नहीं होता
बेचैनी की कोई भाषा नहीं
दुख किसी कैलेंडर में दर्ज नहीं होते
सुख को सहेजना धूप में स्वेटर सुखाना है
मर्यादा की कोई सीमा नहीं होती
और सीमा में रहकर कुछ नहीं होता
देखना सुख है
छूना हक़
पा लेना जुनून
भूल जाना आघात करना है
समंदर के साथ आँखे बनाई गईं
घड़े से ज़्यादा पानी आँख में होता है
औरत को पत्थर बनाया गया
जबकि वह मोम की थी
हमारी पहचान कम हुई
जाना पहले गया
और जान लेने के लिए
‘जान’ लेना ज़रूरी था

शैलजा पाठक
शैलजा पाठक अल्मोड़ा, उत्तराखंड से हैं और हिंदी कविता जगत की समर्थ कवियित्रयों में से एक हैं। आपकी रचनाएँ समय समय पर देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। इन दिनों आपका काव्य संग्रह ‘मैं एक देह हूँ, फिर एक देहरी’ अपने पाठकों के बीच है।