उधर के चोर भी अजीब हैं
लूट और डकैती के अजीबो-गरीब किस्से –
कहते हैं ट्रेन-डकैती सात बजते-बजते संपन्न हो जाती है
क्योंकि डकैतों को जल्दी सोने की आदत है
और चूँकि सारे मुसाफिर बिना टिकट
गरीब-गुरबा मजदूर जैसे लोग ही होते हैं
इसलिए डकैत किसी से झोला किसी से अँगोछा चुनौटी
खैनी की डिबिया छीनते-झपटते
चलती गाड़ी से कूद रहड़ के खेत में गुम हो जाते हैं;
और लूट की जो घटना अभी प्रकाश में आई है
उसमें बलधामी लुटेरों के एक दल ने दिनदहाड़े
एक कट्टे खेत में लगा चने का साग खोंट डाला
और लौटती में चूड़ीहार की चूड़ियाँ लूट लीं;
लेकिन इससे भी हैरतअंगेज है चोरी की एक घटना
जो संपूर्ण क्षेत्र में आज भी चर्चा का विषय है –
कहते हैं एक चोर सेंध मार घर में घुसा
इधर-उधर टो-टा किया और जब कुछ न मिला
तब चुहानी में रक्खा बासी भात और साग खा
थाल वहीं छोड़ भाग गया –
वो तो पकड़ा ही जाता यदि दबा न ली होती डकार।
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अरुण कमल
अरुण कमल (जन्म-15 फरवरी, 1954) आधुनिक हिन्दी साहित्य में समकालीन दौर के प्रगतिशील विचारधारा संपन्न, अकाव्यात्मक शैली के ख्यात कवि हैं। साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त कवि ने कविता के अतिरिक्त आलोचना भी लिखी है, अनुवाद कार्य भी किये हैं तथा लंबे समय तक वाम विचारधारा को फ़ैलाने वाली साहित्यिक पत्रिका आलोचना का संपादन भी किया है।