लुत्फ़ वो इश्क़ में पाए हैं कि जी जानता है
रंज भी ऐसे उठाए हैं कि जी जानता है
जो ज़माने के सितम हैं वो ज़माना जाने
तू ने दिल इतने सताए हैं कि जी जानता है
तुम नहीं जानते अब तक ये तुम्हारे अंदाज़
वो मिरे दिल में समाए हैं कि जी जानता है
इन्हीं क़दमों ने तुम्हारे इन्हीं क़दमों की क़सम
ख़ाक में इतने मिलाए हैं कि जी जानता है
दोस्ती में तिरी दर-पर्दा हमारे दुश्मन
इस क़दर अपने पराए हैं कि जी जानता है

दाग़ देहलवी
नवाब मिर्ज़ा खान दाग़ देहलवी (25मई 1831 - 17 मार्च 1905) अपने उर्दू ग़ज़लों के लिए जाने वाले शायर थे। वह पुरानी दिल्ली के उर्दू शायरी से ताल्लुक रखते थे।