तिलक मार्ग थाने के सामने
जो बिजली का एक बड़ा बक्स है
उसके पीछे नाली पर बनी झुग्गी का वाक़या है यह
चालीस के क़रीब उम्र का बाप
सूखी साँवली लंबी-सी काया परेशान बेतरतीब बढ़ी दाढ़ी
अपने हाथ में एक पतली हरी डाली लिए खड़ा हुआ
नाराज़ हो रहा था अपनी
पाँच साल और सवा साल की बेटियों पर
जो चुपचाप उसकी तरफ़ ऊपर देख रही थीं
ग़ु्स्सा बढ़ता गया बाप का
पता नहीं क्या हो गया था बच्चियों से
कु्त्ता खाना ले गया था
दूध दाल आटा चीनी तेल केरोसीन में से
क्या घर में था जो बगर गया था
या एक या दोनों सड़क पर मरते-मरते बची थीं
जो भी रहा हो तीन बेंतें लगी बड़ी वाली को पीठ पर
और दो पड़ीं छोटी को ठीक सर पर
जिस पर मुंडन के बाद छोटे भूरे बाल आ रहे थे
बिलबिलाई नहीं बेटियाँ एकटक देखती रहीं बाप को तब भी
जो अंदर जाने के लिए धमका कर चला गया
उसका कहा मानने से पहले
बेटियों ने देखा उसे
प्यार, करुणा और उम्मीद से
जब तक वह मोड़ पर ओझल नहीं हो गया

विष्णु खरे
विष्णु खरे (2 फरवरी 1940 – 19 सितम्बर 2018) एक भारतीय कवि, अनुवादक, साहित्यकार तथा फ़िल्म समीक्षक, पत्रकार व पटकथा लेखक थे। वे हिन्दी तथा अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लिखते थे। वे अंग्रेजी साहित्य को विश्वविद्यालय स्तर पर पढ़ाते थे। उन्होंने साहित्य अकादमी में कार्यक्रम सचिव का भी पद सम्भाला तथा वे हिन्दी दैनिक नवभारत टाइम्स के लखनऊ, जयपुर तथा नई दिल्ली में सम्पादक भी रह चुके थे।
विष्णु खरे का निधन १९ सितम्बर २०१८ को ब्रेन हैमरेज के फलस्वरूप हो गया।