विनय सौरभ की कविताएँ

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कविता : विनय सौरभ की

1. पिता की कमीज़

पिता की कमीज़
खूंटी पर टंगी है बरसों से पसीने से भीगी
और पहाड़ों की तरफ से
हवा लगातार कमरे में आ रही है

पिता बरसों से इस मकान में नहीं हैं

हम इस कमीज़ को देखकर ऊर्जा और विश्वास से भर उठते हैं।

2. और अंत में

जिसके पास विज्ञापन की सबसे अच्छी भाषा थी
………वह बचा
………वह औरत बची, जिसके पास सुंदर देह थी
और जो दूसरों के इशारे पर
रात-रात भर नाचती रही

कुछ औरतें और मर्द
जिनमें ख़रीदने की हैसियत थी

और वे सारे लोग बचे
जो बेचने की कला जानते थे।

3. एक कवि का अंतर्द्वंद

वह बहुत उदास-सी शाम थी
जब मैं उसे स्त्री से मिला

मैंने कहा –
मैं तुमसे प्रेम करता हूँ
फिर सोचा –
यह कहना कितना नाकाफ़ी है

वह स्त्री एक वृक्ष में बदल गई
फिर पहाड़ में
फिर नदी में
धरती तो वह पहले से थी ही

मैं उस स्त्री का बदलना देखता रहा !

एक साथ इतनी चीजों से
प्रेम कर पाना कितना कठिन है !
कितना कठिन है एक कवि का जीवन जीना !!

वह प्रेम करना चाहता है
एक साथ कई चीज़ों से
और चीज़ें हैं कि
बदल जाती हैं प्रत्येक क्षण में

 

विनय सौरभ
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विनय सौरभ दुमका, झारखंड से हैं। आप इन दिनों झारखंड सरकार के सहकारिता विभाग में सेवारत हैं। आपसे binay.saurabh@gmail.com पे बात की जा सकती है।

विनय सौरभ दुमका, झारखंड से हैं। आप इन दिनों झारखंड सरकार के सहकारिता विभाग में सेवारत हैं। आपसे binay.saurabh@gmail.com पे बात की जा सकती है।

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