आँसू बाँधे मैंने गठरिया में …
अपने भी हैं और पराए भी हैं ये
उपराए हैं तो तराए भी हैं ये
आप आ गये हैं बराए भी हैं ये
साधे हैं मैंने कन-कन डगरिया में
आँसू बाँधे मैंने गठरिया में …
देखा ये पत्थर के ऊपर चुए हैं
चुपके से चूचू कर चूप हुए हैं
सूने में अटके अभी अनछुए हैं
कांधे हैं मैंने बढ़ के नगरिया में
आँसू बाँधे मैंने गठरिया में …

त्रिलोचन
त्रिलोचन (20/08/1917 – 09/12/2007) हिंदी साहित्य की प्रगतिशील काव्यधारा के प्रमुख हस्ताक्षर माने जाते हैं. वे आधुनिक हिंदी कविता की ‘प्रगतिशील त्रयी’ के तीन स्तंभों में से एक थे. इस त्रयी के अन्य दो स्तम्भ नागार्जुन और शमशेर बहादुर सिंह रहे. आपको 1982 में ‘ताप के ताए हुए दिन’ के लिए साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिला.