हाथों के दिन आएँगे। कब आएँगे,
यह तो कोई नहीं बताता। करने वाले
जहाँ कहीं भी देखा अब तक डरने वाले
मिलते हैं। सुख की रोटी कब खाएँगे,
सुख से कब सोएँगे, उस को कब पाएँगे,
जिसको पाने की इच्छा है, हरने वाले,
हर हर कर अपना-अपना घर भरने वाले,
कहाँ नहीं हैं। हाथ कहाँ से क्या लाएँगे।
हाथ कहाँ हैं, वंचक हाथों के चक्के में
बंधक हैं, बँधुए कहलाते हैं। धरती है
निर्मम, पेट पले कैसे। इस उस मुखड़े
की सुननी पड़ जाती है, धौंसौं के धक्के में
कौन जिए। जिन साँसों में आया करती है
भाषा, किस को चिंता है उसके दुखड़े की।

त्रिलोचन
त्रिलोचन (20/08/1917 – 09/12/2007) हिंदी साहित्य की प्रगतिशील काव्यधारा के प्रमुख हस्ताक्षर माने जाते हैं. वे आधुनिक हिंदी कविता की ‘प्रगतिशील त्रयी’ के तीन स्तंभों में से एक थे. इस त्रयी के अन्य दो स्तम्भ नागार्जुन और शमशेर बहादुर सिंह रहे. आपको 1982 में ‘ताप के ताए हुए दिन’ के लिए साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिला.