पहाड़ के हृदय जैसा मनुष्य का हृदय होना चाहिए

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कविताएँ : रोहित ठाकुर

1. घर

जितनी शास्त्रीय है
यह बात
उतनी ही लौकिक
घर को जोड़ने वाला श्रम
मनुष्य मात्र को ही नहीं
पशु – पक्षी
और
जीवन को धारण किये
कीड़े को भी कितना
सुंदर और अपूर्व
बनाती है ।

2 . रोना

यह जगह आरक्षित है
कोई रो नहीं सकता
कोई पूछे तो कहना
यहाँ कोई रोया नहीं है
वह जगह यहाँ से
बहुत दूर है
जहाँ लोग रो रहे थे
हमने आज मरते
हुए देखा है लोगों को
रोते हुए लोगों को कल देखेंगे।

3 . पहाड़

मैंने पहाड़ को देखा
और कहा
यह एक बड़ा घर है
जिसमें रहते हैं
अनगिनत
पेड़
और
असंख्य चिड़िया
पहाड़ के हृदय जैसा
मनुष्य का हृदय
होना चाहिए।

4 . तारे 

उस दिन सभी तारे
पानी में भीग गये थे
और
कागज की तरह
मुलायम थे छूने पर
मैं नींद में
डूब गया था
और
भीग गया था
सपनों से
उस रोते हुए
आदमी के
आँसुओं में
भीग गया था
उसका जीवन
किसी के प्रेम में
भीगते हैं हम रोज
हमें करते रहना चाहिए
इंतज़ार किसी का
और
यादों की नमी में
भीगना चाहिए
भीतर ही भीतर।

5 . मेरा शत्रु

मेरा शत्रु
प्रकट नहीं है
मैं उसे हरा
नहीं सकता
मुझे
लड़ाई से पहले ही
पहचानना होगा उसे
एक कविता लिखने
वाला आदमी
कैसे पहचान करेगा
अपने शत्रु की
मुझे उनसे ईष्या
होती है
जो पहचान लेते हैं
शत्रु को
जो आते हैं
कविता के घर में
उन्हें कैसे शत्रु मान लूँ।

रोहित ठाकुर

रोहित ठाकुर पटना, बिहार से हैं। आप देश के माने हुए साहित्यकारों में से एक हैं। आपकी रचनाएँ समय समय पर देश के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। आपसे rrtpatna1@gmail.com पे बात की जा सकती है।

रोहित ठाकुर पटना, बिहार से हैं। आप देश के माने हुए साहित्यकारों में से एक हैं। आपकी रचनाएँ समय समय पर देश के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। आपसे rrtpatna1@gmail.com पे बात की जा सकती है।

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