समझदारों का गीत

हवा का रुख कैसा है, हम समझते हैं हम उसे पीठ क्यों दे देते हैं, हम समझते हैं हम समझते हैं खून का मतलब पैसे की कीमत हम समझते हैं क्या है

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मुझे हल कीजिए

मैं एक समस्या हूँ मुझे हल कीजिए उड़ने की चाह हूँ भटक गई राह हूँ निकल गई आह हूँ हिम्मत की थाह हूँ दुखती हुई रग हूँ थका हुआ पग हूँ ठहर

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एक बार कहो तुम मेरी हो

हम घूम चुके बस्ती बन में इक आस की फाँस लिए मन में कोई साजन हो कोई प्यारा हो कोई दीपक हो, कोई तारा हो जब जीवन रात अँधेरी हो इक बार

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वो जिसके हाथ में छाले हैं

वो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है उसी के दम से रौनक आपके बंगले में आई है इधर एक दिन की आमदनी का औसत है चवन्नी का उधर लाखों

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मैंने हारने के लिए

मैंने हारने के लिए यह लड़ाई शुरू नहीं की थी इन अभाव के दिनों में भी जितना खुश हुआ उतना पहले कभी नहीं कि इधर कर्ज़ में जीने की आदत मैंने कई

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न जी भर के देखा

न जी भर के देखा न कुछ बात की बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की उजालों की परियाँ नहाने लगीं नदी गुनगुनाई ख़यालात की मैं चुप था तो चलती हवा रुक गई ज़बाँ

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फिर बसंत आना है

तूफ़ानी लहरें हों अम्बर के पहरे हों पुरवा के दामन पर दाग़ बहुत गहरे हों सागर के माँझी मत मन को तू हारना जीवन के क्रम में जो खोया है, पाना है

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पूर्व प्रेमिकाएँ

मेरे बाद वे उन छातियों से भी लगकर रोई होंगी जो मेरी नहीं थीं दूसरे चुंबन भी जगे होंगे उनके होंठों पर दूसरे हाथों ने भी जगाया होगा उनकी हथेलियों को उनकी

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