हो काल गति से परे चिरंतन, अभी यहाँ थे अभी यही हो। कभी धरा पर कभी गगन में, कभी कहाँ थे कभी कहीं हो। तुम्हारी राधा को भान है तुम, सकल चराचर
मुझसे पहली-सी मुहब्बत मिरे महबूब न माँग मैनें समझा था कि तू है तो दरख्शां है हयात तेरा ग़म है तो ग़मे-दहर का झगड़ा क्या है तेरी सूरत से है आलम में
Moreबुरी औरत के सपनों में नहीं होता पति और चरित्र और मर्यादाएँ बन्द खिड़कियों वाला पिंजरेनुमा घर बुरी औरत के सपनों में नहीं होती बदन को धरती बनाकर धान कुटवाने वाली निर्जीव
Moreसाधो ये मुरदों का गाँव पीर मरे पैगम्बर मरिहैं मरि हैं जिन्दा जोगी राजा मरिहैं परजा मरिहैं मरिहैं बैद और रोगी चंदा मरिहैं सूरज मरिहैं मरिहैं धरणि आकासा चौदां भुवन के चौधरी
Moreक्या तुम कविता की तरफ़ जा रहे हो ? नहीं, मैं दीवार की तरफ़ जा रहा हूँ । फिर तुमने अपने घुटने और अपनी हथेलियाँ यहाँ क्यों छोड़ दी हैं ? क्या तुम्हें चाकुओं
Moreये असंगति ज़िन्दगी के द्वार सौ सौ बार रोयी बांह में है और कोई चाह में है और कोई साँप के आलिंगनों में मौन चन्दन तन पड़े हैं सेज के सपनों भरे
Moreट्यूशन में बैठे -बैठे आशिमा की कमर में दर्द होने लगता है, वो जब अपने कमर को सीधा करती है और एक सांस भरती है तो उसका वक्ष थोड़ा फूल जाता है।
Moreकेवल दो गीत लिखे मैंने इक गीत तुम्हारे मिलने का इक गीत तुम्हारे खोने का सड़कों-सड़कों, शहरों-शहरों नदियों-नदियों, लहरों-लहरों विश्वास किये जो टूट गए कितने ही साथी छूट गए पर्वत रोये-सागर रोये
Moreजब ढह रही हों आस्थाएँ जब भटक रहे हों रास्ता तो इस संसार में एक स्त्री पर कीजिए विश्वास वह बताएगी सबसे छिपाकर रखा गया अनुभव अपने अँधेरों में से निकालकर देगी
Moreमेरे हाथ में एक कलम है जिसे मैं अक्सर ताने रहता हूँ हथगोले की तरह फेंक दूँ उसे बहस के बीच और धुँआ छँटने पर लड़ाई में कूद पड़ूँ – कोई है
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