शुन्यता

जब बिखरी हुई यादें पड़ी होती हैं काली रौशनी के मानिंद तो ग़ैर-जरूरी चीजें साथ देती हैं मसलन खुली सड़क को ताकना ठंडी चाय की छाली हटा कर पीना और फिर सब

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ग़ुलामी की अंतिम हदों तक लड़ेंगे

इस ज़माने में जिनका ज़माना है भाई उन्हीं के ज़माने में रहते हैं हम उन्हीं की हैं सहते, उन्हीं की हैं कहते उन्हीं की ख़ातिर दिन-रात बहते हैं हम ये उन्हीं का

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वसीयत

भला राख की ढेरी बनकर क्या होगा ? इससे तो अच्छा है कि जाने के पहले अपना सब कुछ दान कर जाऊँ। अपनी आँखें मैं अपनी स्पेशल के ड्राइवर को दे जाऊँगा। ताकि

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ये बातें झूठी बातें हैं

ये बातें झूठी बातें हैं, ये लोगों ने फैलाई हैं तुम इंशा जी का नाम न लो, क्या इंशा जी सौदाई हैं? हैं लाखों रोग ज़माने में, क्यों इश्क़ है रुसवा बेचारा हैं

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