रात-भर सर्द हवा चलती रही
रात-भर हम ने अलाव तापा
मैं ने माज़ी से कई ख़ुश्क सी शाख़ें काटीं
तुम ने भी गुज़रे हुए लम्हों के पत्ते तोड़े
मैं ने जेबों से निकालीं सभी सूखी नज़्में
तुम ने भी हाथों से मुरझाए हुए ख़त खोले
अपनी इन आँखों से मैं ने कई माँजे तोड़े
और हाथों से कई बासी लकीरें फेंकीं
तुम ने पलकों पे नमी सूख गई थी सो गिरा दी
रात भर जो भी मिला उगते बदन पर हम को
काट के डाल दिया जलते अलाव में उसे
रात-भर फूँकों से हर लौ को जगाए रक्खा
और दो जिस्मों के ईंधन को जलाए रक्खा
रात-भर बुझते हुए रिश्ते को तापा हम ने

गुलज़ार
गुलज़ार हिंदी फिल्मों के एक प्रसिद्ध गीतकार हैं. इसके अतिरिक्त वे एक कवि, पटकथा लेखक, फ़िल्म निर्देशक नाटककार तथा प्रसिद्ध शायर हैं. गुलज़ार को वर्ष 2002 में साहित्य अकादमी पुरस्कार और वर्ष 2004 में भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है. वर्ष 2009 में डैनी बोयल निर्देशित फ़िल्म स्लम डॉग मिलियनेयर में उनके द्वारा लिखे गीत जय हो के लिये उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीत का ऑस्कर पुरस्कार मिल चुका है. इसी गीत के लिये उन्हें ग्रैमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है.