जिसके गालों में टिप्पे पड़ते हैं

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ज़िक्र उस परीवश का और फिर बयाँ अपना
बन गया रक़ीब आख़िर था जो राज़दाँ अपना
(ग़ालिब)

‘ज़िक्र परीवश का-’
जिसके गालों में टिप्पे पड़ते हैं
जिसके दाँतों में बर्क़ रखी है
खिलखिलाकर वह जब भी हँसती है
नाक भी फड़फड़ाके हँसती है
उसके कानों में सुर्ख़ बेर लटकाकर
जो मयस्सर थी कायनात उसमें
और दो सय्यारे ढूँढ़े हैं

ज़िक्र उस परीवश का
और फिर बयाँ अपना..
मेरे शेरों में झाँकते हैं लोग
चुप रहूँ मैं तो खाँसते हैं लोग

गुलज़ार
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गुलज़ार हिंदी फिल्मों के एक प्रसिद्ध गीतकार हैं. इसके अतिरिक्त वे एक कवि, पटकथा लेखक, फ़िल्म निर्देशक नाटककार तथा प्रसिद्ध शायर हैं. गुलज़ार को वर्ष 2002 में साहित्य अकादमी पुरस्कार और वर्ष 2004 में भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है. वर्ष 2009 में डैनी बोयल निर्देशित फ़िल्म स्लम डॉग मिलियनेयर में उनके द्वारा लिखे गीत जय हो के लिये उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीत का ऑस्कर पुरस्कार मिल चुका है. इसी गीत के लिये उन्हें ग्रैमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है.

गुलज़ार हिंदी फिल्मों के एक प्रसिद्ध गीतकार हैं. इसके अतिरिक्त वे एक कवि, पटकथा लेखक, फ़िल्म निर्देशक नाटककार तथा प्रसिद्ध शायर हैं. गुलज़ार को वर्ष 2002 में साहित्य अकादमी पुरस्कार और वर्ष 2004 में भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है. वर्ष 2009 में डैनी बोयल निर्देशित फ़िल्म स्लम डॉग मिलियनेयर में उनके द्वारा लिखे गीत जय हो के लिये उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीत का ऑस्कर पुरस्कार मिल चुका है. इसी गीत के लिये उन्हें ग्रैमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है.

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