मेकअप रूम में कवि

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मेकअप रूम में कवि

(एक)
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मेक-अप रूम में कवि ने
छब्बीस बार गुनगुनाया प्रेम
और तेरह बार दोहराया प्रतीक्षा
पूरे ध्यान से साढ़े छह बार फुसफुसाया
प्रतिरोध और अन्त में सवा तीन बार
याद किया प्रतिबद्धता को विश्वास पूर्वक
कि मठाधीश ने बताया था
सवा तीन रत्ती का नग
राष्ट्रीय पुरस्कार के लिये जो शुभ था
क्योंकि मठाधीश तो पूर्व निर्धारित था
निर्णायक-मण्डल में एक मात्र वो
जिसे कहते हैं नामी-गिरामी

(दो)
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गधे की तरह
लटकाया कवि ने मुँह
ऊँट की तरह गर्दन लम्बी की
उचकते हुये
उछल-कूद करी बन्दर की तरह
और कुत्ते की तरह दुम हिलाते हुये
बकरी की तरह मिमियाया
और अन्ततः
मनुष्य की तरह बनने की कोशिश में
जब मरने को हुआ
तो मेज़ पर रखे आईने को झूठा कहकर
रुआंसा हो गया
मेक-अप रूम में कवि बहुत दयनीय दिखा
और गिरा हुआ भी फ़र्श पर
जैसे थूक

(तीन)
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मेक-अप रूम में पौंछा कवि ने
पुरस्कार का पसीना और
प्रतिरोध के पाउडर से
चमक लाने की कोशिश की चेहरे पर
चापलूसी से बिखरे बालों में
संवेदना की कंघी करते
दो-तीन बार संवारा
और गले में निचोड़ते हुये
आलोचना का अमरफल
आँखों पर
थोड़ी-सी प्रतिबद्धता रगड़ी कवि ने
बड़े चाव से खुजलाई
अपनी दाढ़ी में क्रान्ति की खटमलिया खाज
और अन्त में पहनकर
पुरखों के “फटे-जूते” तैयार हो गया कवि
दिखने को कवि-सा

(चार)
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कागज़ पर कुछ उद्धरण टीपे कवि ने
पुरानी तस्वीरों को निहारा चाव से

मेक-अप रूम में कवि ने
ललाट पर कुछ सलवटें डाली और
चिन्तातुर होने के उपक्रम में
आँखें पौंछी बिना बात ही

गम्भीरता पूर्वक सम्भालते हुए अपना
बेदाग़-सा दिखने वाला उत्तरीय साथ में
नाक को थोड़ा ऊँचा खींच कर उठाया और
आलाप को विलाप के सुर में साधा

कुछ देर तक
उस स्त्री की सुन्दरता के बारे में सोचा
कि दिखने के बावजूद कवि की तरह
जिसने नहीं सुनी
उसकी कविताऐँ

(पाँच)
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स्वप्न देख रहा था कवि
मेक-अप रूम में मग्न
कि मालायें पड़ रही थीं
किस्म-किस्म के फूलों की गले में
और कंधे पर उढ़ाये जा रहे थे
शाल-दुशाले बेशक़ीमती
प्रशंसा-प्रत्यय आविष्कृत कर रहा था
मुख्य-वक्ता कि अचानक
एक मनोहारी हाथ के
मुलायम स्पर्श से चौंकते हुये
कवि का स्वप्न-भंग हो गया और
लार टपक पड़ी
फ़र्श पर दाग़ छोड़ती
जैसे स्वप्न-दोष

(छह)
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मन ही मन उच्चारे कुछ भ्रमित शब्द
और आईने के सामने बैठकर
लालसा-दृष्टि से
भावुकता में मग्न अनुभव किया
शब्द-प्रभाव कवि ने
लगभग तय करने के बाद
अपना कवि होना
आत्मालाप में पढ़ीं
अपनी कवितायेँ स्वयं-सिद्ध बनते हुये

महान कवि और प्रबुद्ध-पाठक के साथ-साथ
सहज-शुद्ध
आलोचक भी बन गया कवि
भूलते हुये पूरी तरह आत्म-ग्लानि की परम्परा

(सात)
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तर्कों पर तैराया अवसर का स्नेहक और
भाषा को भिगोया
भावुकता के मधुरस में मन्द-मन्द
अनुभव को अपनाया
अदृश्य स्वप्रों पर
उड़ाकर हवा में फिर संचित संवेदना को
मेक-अप-रूम में कवि ने
बहुत बहुत गर्व किया
स्वयं की कविता पर स्वयं के सम्मान में

कैलाश मनहर

कैलाश मनहर जयपुर के प्रतिष्ठित कवियों में से हैं. आपसे manhar.kailash@gmail.com पे बात की जा सकती है.

कैलाश मनहर जयपुर के प्रतिष्ठित कवियों में से हैं. आपसे manhar.kailash@gmail.com पे बात की जा सकती है.

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