कितने सीमित हो गये हैं विकल्प
कि बेदाग़ की जगह
चुने जा रहे हैं कम दाग़दार
जन को साधने के लिये
साधी जा रही है जात
साधा जा रहा है ईश्वर
खोजकर बोयी जा रही हैं असमानताएँ
हृदय की मिट्टी से प्रेम को खोदकर
भरी जा रही है घृणा
जितना बाँटा जा सकता है,
बाँटा जा रहा है
इतिहास को खोदकर ढूंढे जा रहे हैं शिलालेख
और गाड़े जा रहे हैं वहाँ,
जहाँ से दरारें दिखाई दें स्पष्ट
हमारी पहचान पर लादे जा रहे हैं
बेहिसाब विशेषण
जिनके बोझ तले धकेल देने की मंशा है
हमारी सोच पाने की शक्ति को
सिर्फ एक तरफ़।

योगेश ध्यानी
योगेश ध्यानी मर्चेंट नेवी में अभियंता के रूप में कार्यरत हैं। आपकी रचनाएँ समय समय पे देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। आपसे yogeshdhyani85@gmail.com पे बात की जा सकती है।