(वीरेन के लिए)
एक दिन इसी तरह किसी फ़ाइल के भीतर
या कविता की किताब के पन्नों में दबा
तुम्हारा ख़त बरामद होगा
मैं उसे देखूँगा, आश्चर्य से, ख़ुशी से
खोलूँगा उसे, पढ़ूँगा एक बार फिर
कई-कई बार पढ़े पुरानी बातों के क़िस्से
तुम्हारी लिखावट और तुम्हारे शब्दों के सहारे
मैं उतर जाऊँगा उस नदी में
जो मुझे तुमसे जोड़ती है
जिसके साफ़-शफ़्फ़ाफ़ नीले जल में
घुल गई हैं घटनाएँ, प्रसंग और अनुभव
घुल गई हैं बहसें और झगड़े
एक दिन इसी तरह किसी फ़ाइल में
किसी किताब के पन्नों में
बरामद होगा तुम्हारा ख़त
मैं उसे खोलूंगा
झुर्रीदार हाथों की कँपकँपाहट के बावजूद
आँखों की ज्योति मन्द हो जाने पर भी
मैं पढ़ सकूँगा तुम्हारा ख़त
पढ़ सकूँगा वे सारे ख़त
जो तुमने मुझे लिखे
और वे भी
जो तुमने नहीं लिखे
एक दिन इसी तरह
तुम्हारा ख़त होगा और मैं !
संबंधित पोस्ट:

नीलाभ
नीलाभ (1945 - 2016) एक भारतीय हिंदी कवि, आलोचक, पत्रकार एवं अनुवादक थे। उनके अनेक कविता संग्रह प्रकाशित हैं। कविता के अतिरिक्त उन्होंने आलोचना भी लिखी है। मौलिक लेखन के अतिरिक्त वे अनेक उल्लेखनीय लेखकों के साहित्य के अनुवाद के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं। उन्होंने विलियम शेक्सपीयर, बर्तोल्त ब्रेख्त, मिखाइल लर्मोन्टोव, अरुंधति राय, सलमान रुश्दी, एवं वी. एस. नायपाल जैसे लेखकों की पुस्तकों का अनुवाद किया है।