इतना सहज नहीं है विश्व
कि झरने झरते रहें
पहाड़ कभी झुकें ही नहीं
नदी आए और कहे
कि मैं हमेशा बहूँगी तुम्हारे साथ
शहर के क़ानून
तुम्हारे मुताबिक़
मानवीय हो जाएँ
और ख़ुशियों के इंतिज़ार में
तुम्हारी उम्र न ढले
समय की अचूक धार पर रखा
तुम्हारा कलेजा
दो-टूक न हो
तुम रोते रहो अँधेरों में
और रोशनी की कोई किरण
तुम्हें मिल जाए
कभी दुखे ही नहीं
इतने पुख़्ता नहीं हैं विश्वास भी!

पंकज चतुर्वेदी
पंकज चतुर्वेदी (जन्म १९७१) भारतभूषम अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित कवि एवं आलोचक हैं। आत्मकथा की संस्कृति इनकी सर्वप्रमुख आलोचना पुस्तक है।