जवान होते बेटों !
इतना झुकना
इतना
कि समतल भी ख़ुद को तुमसे ऊँचा समझे
कि चींटी भी तुम्हारे पेट के नीचे से निकल जाए
लेकिन झुकने का कटोरा लेकर मत खड़े होना घाटी में
कि ऊपर से बरसने के लिए कृपा हँसती रहे
इस उमर में
इच्छाएँ कंचे की गोलियाँ होती हैं
कोई कंचा फूट जाए तो विलाप मत करना
और कोई आगे निकल जाए तो
तालियाँ बजाते हुए चहकना कि फूल झरने लगें
किसी को भीख न दे पाना तो कोई बात नहीं
लेकिन किसी की तुमड़ी मत फोड़ना
किसी परेशानी में पड़े हुए की तरह मत दिखाई देना
किसी परेशानी से निकल कर आते हुए की तरह दिखना
कोई लड़की तुमसे प्रेम करने को तैयार न हो
तो कोई लड़की तुमसे प्रेम कर सके
इसके लायक ख़ुद को तैयार करना
जवान होते बेटों !
इस उमर में संभव हो तो
घंटे दो घंटे मोबाइल का स्विच ऑफ रखने का संयम बरतना
और इतनी चिकनी होती जा रही दुनिया में
कुछ ख़ुरदुरे बने रहने की कोशिश करना
जवान होते बेटों!
जवानी में न बूढ़ा बन जाना शोभा देता है
न शिशु बन जाना
यद्यपि बेटों
यह उपदेश देने का ही मौसम है
और तुम्हारा फ़र्ज़ है कोई भी उपदेश न मानना।

अष्टभुजा शुक्ल
अष्टभुजा शुक्ल (जन्म 1954, दीक्षापार गाँव, उत्तर प्रदेश) हिंदी के कवि हैं। उन्हें हिंदी कविता में अपने विशिष्ट योगदान के कारण केदार सम्मान से सम्मानित किया गया है।