उन रास्तों से मैं कभी नहीं आना चाहता था
जहाँ लिखा था कि प्रेम यही उत्पन्न हुआ
वहाँ तुम्हारी तासीर थी और एक अनकही गन्ध
जो बांधे रही समय दर समय
कितनी देर बैठा इल्म नहीं
तुम्हारा ये कहना कि
उर्दू लफ़्ज़ का इस्तेमाल लड़कियों के लिए करते हो
मैंने ये कभी नहीं कहा कि तुम्हारे लिए
तुम समझ सकती कि हिंदी की पारंगत
और उर्दू का महबूब मैंने तुम्हें ऐसा ही माना
पहाड़ बादल ओढ़े थे और मैं तुम्हारा नाम
मेरे नाम के पीछे अब कोई सरनेम नहीं है
सिवा इसके कि अब तुम्हारे नाम से जाना जाऊँ
हवा में प्रेम था दिल दूर कहीं दूर एक जगह था
तुम्हारा ना होने का गम पहाड़ के संग दिखा
जहाँ ये बात उतनी ही कोरी थी
कि कहूँ कि तुम बिन मैं नहीं
मेरे होने में तुम्हरा होना
पहाड़ की बयानी थी
मैं प्रेम करता रहा
प्रेम में ही जीता रहा
तुम्हारे न होने पर तुम्हारी बात ख़ुद के भीतर करने लगा
सुना है इसी मौसम में अखरोट होते हैं
लड़की अखरोट नहीं होती
तुमने पहली दफ़ा कहा था
जो मेरे लिए आज सूत्र बन गए हैं
कई बार रोते हुए इंतजार करते हुए
मैंने ये पूछा मगर तुमने कहा नहीं
मैंने इसे ही तुम्हारी उपस्थिति मानी
मेरे होने के संग तुम्हारा होना
ज्यामितीय सूत्र की तरह सिद्ध हो चुका है।

सत्यम कुमार झा
सत्यम कुमार झा मूलतः दरभंगा, बिहार से हैं। आप पेशे से पत्रकार हैं और युवा लेखकों के बीच माने हुए समर्थ कवियों में शुमार हैं। आपसे satyam.mbt@gmail.com पे बात की जा सकती है।