तुमने कहा—
ब्रह्मा के पाँव से जन्मे शूद्र
और सिर से ब्राह्मण
उन्होंने पलट कर नहीं पूछा—
ब्रह्मा कहाँ से जन्मा?
तुमने कहा—
सेवा ही धर्म है शूद्र का
उन्होंने नहीं पूछा—
बदले में क्या दोगे?
तुम ख़ुश थे—
ग़ुलामी पाकर
वे भी ख़ुश थे
तुम्हारी ख़ुशी देखकर
सौंपकर अपनी तमाम शक्ति
तुम्हारे हाथों में।
तन पर कपड़े नहीं
पेट में अन्न नहीं
ज़ख़्म इतने फिर भी
वे हँसते थे
तुम्हें हँसता देखकर!
वे नहीं जानते थे
क़वायद करना
लूटना—
निर्बल और असहाय को!
नहीं जानते थे
हत्या करना
वीरता की पहचान है
लूट-खसोट अपराध नहीं
संस्कृति है।
कितने मासूम थे वे
मेरे पुरखे
जो इंसान थे
लेकिन अछूत थे!
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ओमप्रकाश वाल्मीकि
ओमप्रकाश वाल्मीकि (30/06/1950 – 17/11/2013) दलित साहित्य के प्रतिनिधि रचनाकारों में से एक थे. हिंदी में दलित साहित्य के विकास में आपकी महत्वपूर्ण भूमिका रही.