तब तुम क्या करोगे

1 min read

यदि तुम्हें,
धकेलकर गांव से बाहर कर दिया जाए
पानी तक न लेने दिया जाए कुएँ से
दुत्कारा फटकारा जाए चिल-चिलाती दोपहर में
कहा जाए तोड़ने को पत्थर
काम के बदले
दिया जाए खाने को जूठन
तब तुम क्या करोगे?

यदि तुम्हें,
मरे जानवर को खींचकर
ले जाने के लिए कहा जाए
और
कहा जाए ढोने को
पूरे परिवार का मैला
पहनने को दी जाए उतरन
तब तुम क्या करोगे ?

यदि तुम्हें,
पुस्तकों से दूर रखा जाए
जाने नहीं दिया जाए
विद्या मंदिर की चौखट तक
ढिबरी की मंद रोशनी में
काली पुती दीवारों पर
ईसा की तरह टांग दिया जाए
तब तुम क्या करोगे?

यदि तुम्हें,
रहने को दिया जाए
फूस का कच्चा घर
वक्त-बे-वक्त फूंक कर जिसे
स्वाहा कर दिया जाए
वर्षा की रातों में
घुटने-घुटने पानी में
सोने को कहा जाए
तब तुम क्या करोगे?

यदि तुम्हें,
नदी के तेज बहाव में
उल्टा बहना पड़े
दर्द का दरवाजा खोलकर
भूख से जूझना पड़े
भेजना पड़े नई नवेली दुल्हन को
पहली रात ठाकुर की हवेली
तब तुम क्या करोगे?

यदि तुम्हें,
अपने ही देश में नकार दिया जाए
मानकर बंधुआ
छीन लिए जाएँ अधिकार सभी
जला दी जाय समूची सभ्यता तुम्हारी
नोच-नोच कर
फेंक दिए जाएँ
गौरव में इतिहास के पृष्ठ तुम्हारे
तब तुम क्या करोगे?

यदि तुम्हें,
वोट डालने से रोका जाए
कर दिया जाय लहू-लुहान
पीट-पीट कर लोकतंत्र के नाम पर
याद दिलाया जाय जाति का ओछापन
दुर्गन्ध भरा हो जीवन
हाथ में पड़ गये हों छाले
फिर भी कहा जाए
खोदो नदी नाले
तब तुम क्या करोगे?

यदि तुम्हें ,
सरे आम बेइज्जत किया जाए
छीन ली जाय संपत्ति तुम्हारी
धर्म के नाम पर
कहा जाए बनने को देवदासी
तुम्हारी स्त्रियों को
कराई जाए उनसे वेश्यावृत्ति
तब तुम क्या करोगे?

साफ सुथरा रंग तुम्हारा
झुलस कर सांवला पड़ जायेगा
खो जायेगा आंखों का सलोनापन
तब तुम कागज पर
नहीं लिख पाओगे
सत्यम, शिवम, सुन्दरम!
देवी-देवताओं के वंशज तुम
हो जाओगे लूले लंगड़े और अपाहिज
जो जीना पड़ जाए युगों-युगों तक
मेरी तरह?
तब तुम क्या करोगे?

ओमप्रकाश वाल्मीकि

ओमप्रकाश वाल्मीकि (30/06/1950 – 17/11/2013) दलित साहित्य के प्रतिनिधि रचनाकारों में से एक थे. हिंदी में दलित साहित्य के विकास में आपकी महत्वपूर्ण भूमिका रही.

ओमप्रकाश वाल्मीकि (30/06/1950 – 17/11/2013) दलित साहित्य के प्रतिनिधि रचनाकारों में से एक थे. हिंदी में दलित साहित्य के विकास में आपकी महत्वपूर्ण भूमिका रही.

नवीनतम

मेरे मन का ख़याल

कितना ख़याल रखा है मैंने अपनी देह का सजती-सँवरती हूँ कहीं मोटी न हो जाऊँ खाती

तब भी प्यार किया

मेरे बालों में रूसियाँ थीं तब भी उसने मुझे प्यार किया मेरी काँखों से आ रही

फूल झरे

फूल झरे जोगिन के द्वार हरी-हरी अँजुरी में भर-भर के प्रीत नई रात करे चाँद की

पाप

पाप करना पाप नहीं पाप की बात करना पाप है पाप करने वाले नहीं डरते पाप

तुमने छोड़ा शहर

तुम ने छोड़ा शहर धूप दुबली हुई पीलिया हो गया है अमलतास को बीच में जो