खिड़कियों को
दरवाज़ों से ज़्यादा सुंदर होना चाहिए
दरवाज़ों से मुझे एक भय रहता है
कभी तुम निकलो
और न लौट सको फिर कभी मेरी तरफ़
इसलिए, मैं इन खिड़कियों को सजाता रहता हूँ
उन स्मृतियों की तरह
जिनसे तुम्हारे जाने का कोई भय नहीं
कभी-कभी जब दरवाज़े के बंद होते ही
कमरे में भरने लगता है अँधेरा
तब मन सरकने लगता है
खिड़की से झांकते उजाले की ओर
खिड़कियाँ,
हर बंद होते कमरे की उम्मीद है
खिड़कियाँ उन स्मृतियों की तरह भी है
जिनसे कूद कर आ सकता है बचपन
जिनसे छन कर आती धूप
मिटा सकती है मन की सीलन
बाहर चहकती किसी चिड़िया की आवाज़
गिरा सकती है
अचानक तुम्हारी उदासी की दीवार
और तुम लौट सकते हो फिर से
जीवन की ओर
जीवन से भरे हुए।
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हेमंत परिहार
हेमंत परिहार सुमेरपुर, राजस्थान से हैं। आपकी रचनाएँ समय-समय पे देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। आपसे parihar33@gmail.com पे बात की जा सकती है।