नहीं हूँ किसी का भी प्रिय कवि मैं
ज़रा देर से ही सही मुझे यह ज्ञात हुआ
आज मैं कृतज्ञ हूँ
जाने-अनजाने हर किसी का
और यह हर किसी का व्यूह
मुझे त्रासता नहीं है
एक-एक को मैं अलगाता हूँ
पास चला जाता हूँ।
कन्धे पर हाथ रखकर कहता हूँ
अपनी कहो।
अपना जमाना ज़रा और है
कोई किसी की नहीं सुनता
तो भी हर कोई हर किसी के पास खड़ा है
हर कोई अपना अधिवक्ता है।
ऐसे में
कोई यदि प्रिय कवि है
तो यह उस कवि के लिए अच्छा है
कविता से मिलता ही क्या कुछ है
रॉयल्टी के थोड़े पैसे मिल जाएँ यही बहुत है
पैसों का अर्थ आज कौन नहीं जानता
(माँगकर खाना असम्भव है, देगा कौन)
चर्चा हो तो भी कम लाभ नहीं
भाषा बाज़ार की है बात मगर जी की है
यदि मेरी बात मेरी भाषा के ओठों को
पार नहीं कर पाती तो भी क्या बुरा है
कह-कहवाव से भी अलग
कभी-कभी बात होती है
मेरी कविताओं के सपने सब मेरे हैं
मुझे तो प्रसन्नता है।
यदि मेरे सपनों को कोई भी नहीं कहता
मेरे हैं।

त्रिलोचन
त्रिलोचन (20/08/1917 – 09/12/2007) हिंदी साहित्य की प्रगतिशील काव्यधारा के प्रमुख हस्ताक्षर माने जाते हैं. वे आधुनिक हिंदी कविता की ‘प्रगतिशील त्रयी’ के तीन स्तंभों में से एक थे. इस त्रयी के अन्य दो स्तम्भ नागार्जुन और शमशेर बहादुर सिंह रहे. आपको 1982 में ‘ताप के ताए हुए दिन’ के लिए साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिला.