यह एक नया दिन है—
ख़ून में नहाई सदियों के बाद—यह मौन अट्टहास।
न्याय की आशा में बाँधे हुए तुम्हें—मैं ताक रहा हूँ
बूँद-बूँद टूटते आकाश में अँधेरा चिड़ियों की आँखें निचोड़ रहा है
बदली की तंग गलियों में दस्ते पर उतर रहे हैं…
एक नया दिन है यह… मेरे प्यार! चारों ओर युद्ध चल रहे हैं
सभी समझते हैं इतनी भयावह नीरवता का अर्थ।
कुछ नहीं होगा—यदि मैंने बाँहों में सारा इतिहास गुज़ार दिया
यदि मैंने आँखों पर उगा लिया फिर ताजमहल,
यदि मैंने तुम्हारी हज़ार-हज़ार बरुनियों पर एक-एक गीत लिखे
यदि मैंने रोम-रोम चहचहाते चुंबनों से भरे।
कुछ नहीं होगा—यदि मैंने छीलकर उँगलियाँ भी रख दीं।
यह एक नया दिन है
ख़ून में नहाई सदियों के बाद—यह मौन अट्टहास…
किस अज्ञात इशारे पर हरी-हरी पत्तियाँ सुलग उठेंगी?
घटना-विहीन मैं घट जाऊँगा? किस अज्ञात इशारे पर
तुम मेरे अंतर-संगीत! आधी रात
उठकर चल दोगे?

दूधनाथ सिंह
दूधनाथ सिंह (1936 – 2018) हिंदी के आलोचक, संपादक एवं कथाकार थे. उन्होंने अपनी कहानियों के माध्यम से साठोत्तरी भारत के पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, नैतिक एवं मानसिक सभी क्षेत्रों में उत्पन्न विसंगतियों को चुनौती दी.