अँधेरा बढ़ रहा
त्रासद अंधेरा है यह
और
हम प्रतीक्षारत
रोशनी में डूब कर पढ़े जाने के लिए प्रस्तुत
प्रतीक्षा को पढ़ने के लिए चाहिए
एक जीवन का सन्नाटा
सन्नाटे को साधने के लिए पूरी उम्र की प्रतीक्षा
सीढ़ियों पर बिखरे सूखे पत्तों को देखो
उसकी नीरवता को पढ़ने के लिए
प्रेम के विषाद को सहेज कर
रखना होगा तुम्हें;
भूलने-सा कोई विकल्प है भी तो नहीं
जानते हो ना
म्लान सी धूप की आँच पर
तरल हो उठता है प्रेम
एक नमी घुलती जा रही रंध्र में
हमारे भीतर के ठहरे जल को
झिंझोड़ती है एक आवाज़
सघन होते इस अंधेरे में
शब्दहीन हो गया है समय
मेरी साँसें दीवारों से टकराकर
लौट-लौट आती हैं मेरे पास
कहाँ हो तुम?
अँधेरा बढ़ रहा
त्रासद अंधेरा है यह
कहाँ हो तुम?

सौम्या सुमन
सौम्या सुमन (जन्म - 21 फ़रवरी), मूलतः पटना से हैं. आप मौज़ूदा समय की समर्थ व सशक्त आवाज़ों में से एक हैं. आपकी रचनायें समय-समय पे देश के विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं पे प्रकाशित होती रहती हैं. आपका पहला कविता संग्रह, नदी चुप है, इन दिनों अपने पाठकों के बीच है. आपसे sumansinha212@gmail.com पे बात की जा सकती है.