एक फटे हुए क्षण में
जूता सिलाने मैं चला
सड़क चौड़ी थी
पाँव पतले
नंबर तीन वाले
पेड़ सिकुड़ा खड़ा
बूढ़ा बैठा जहाँ
दिमाग़ में कुछ आता न था
कमरा खुला दरियाँ बिछीं मौसम हरा न था
सतह पर परम भीतर से खखारा गया
कफ़
उफ़! ज़िंदगी है मर्द
औरत-रहित
दर्द बाँधूँ किस विलॅन से प्राण?

मलयज
मलयज (जन्म 1935 ई., आजमगढ़, निधन 26 अप्रैल 1982 ई.) जिनका असल नाम भरत श्रीवास्तव है, हिंदी के प्रतिष्ठित कवि, लेखक और आलोचक थे । मलयज का रामचन्द्र शुक्ल की आलोचना दृष्टि को पुनर्व्याख्यायित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान है, जिसके कारण हिंदी आलोचना जगत में वे विशेष उल्लेखनीय माने जाते हैं। उन्होंने हिन्दी साहित्य में नेहरू युग के बाद की रचनाधर्मिता और उसके परिवेश को समझने विश्लेषित करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया ।