नहीं लिखा होगा कहीं
कि धीरे-धीरे बदल गए
पैरों के निशान पगडंडियों में
पगडंडियाँ बदल गई रास्तों में
और एक दिन रास्ते बदल गए
किसी अबूझ पहेली में
नहीं लिखा होगा
कि नहीं कर पाया कोई
किसी के आने का अनुवाद
और नहीं थी किसी के पास कोई परिभाषा
किसी के पदचापों की
सुस्ताने के संकेत तो होंगे
किसी पड़ाव की पीठ पर
पर यह नहीं लिखा होगा वहाँ
कि कोई कितना जा रहा था कहीं
और कितना छूट गया है कहीं
और न ही लिखा होगा यह कहीं
कि हम तमाम उम्र अपना पर्याय खोजते रहे
जबकि हमें खोजना था
अपना अर्थ।

नरेश गुर्जर
नरेश गुर्जर नागौर, राजस्थान से हैं और अब तक आपके तीन काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें “सारे सृजन तुमसे हैं”, “मेरा मुझमें कुछ नहीं”, व एक साझा संग्रह “प्रेम तुम रहना” शामिल हैं। आपसे nareshgurjar902@gmail.com पे बात की जा सकती है।