हस्ती अपनी हबाब की सी है
ये नुमाइश सराब की सी है
नाज़ुकी उसके लब की क्या कहिए
पंखुड़ी इक गुलाब की सी है
बार-बार उस के दर पे जाता हूँ
हालत अब इज्तेराब की सी है
मैं जो बोला कहा कि ये आवाज़
उसी ख़ाना ख़राब की सी है
‘मीर’ उन नीमबाज़ आँखों में
सारी मस्ती शराब की सी है

मीर तकी 'मीर'
ख़ुदा-ए-सुखन मोहम्मद तकी उर्फ मीर तकी 'मीर' (1723 - 1810) उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के महान शायर थे। मीर को उर्दू के उस प्रचलन के लिए याद किया जाता है जिसमें फ़ारसी और हिन्दुस्तानी के शब्दों का अच्छा मिश्रण और सामंजस्य हो।