हर तरफ धुआँ है

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हर तरफ धुआँ है
हर तरफ कुहासा है
जो दाँतों और दलदलों का दलाल है
वही देशभक्त है

अंधकार में सुरक्षित होने का नाम है – तटस्थता
यहाँ कायरता के चेहरे पर
सबसे ज्यादा रक्त है
जिसके पास थाली है
हर भूखा आदमी
उसके लिए, सबसे भद्दी गाली है

हर तरफ कुआँ है
हर तरफ खाई है
यहां, सिर्फ, वह आदमी, देश के करीब है
जो या तो मूर्ख है
या फिर गरीब है

धूमिल
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सुदामा पाण्डेय धूमिल हिंदी की समकालीन कविता के दौर के मील के पत्थर सरीखे कवियों में एक है। उनकी कविताओं में आजादी के सपनों के मोहभंग की पीड़ा और आक्रोश की सबसे सशक्त अभिव्यक्ति मिलती है।

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