लिखती हुई औरतें

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इन दिनों झुंड में बैठकर
जंतसार गाते हुए
तुम्हारे पोथी-पतरा,
वेद-पुराण को धता बताकर
धर्म की चौखट लाँघ
लिख रही हैं औरतें

वे लिखती हैं प्रेम
वे लिखती हैं विरह
वे लिखती हैं तुम्हारा दुहरापन
कि कब-कैसे निकल आता है
तुम्हारे भीतर का मर्द—
वक़्त-बेवक़्त

वे लिखती हैं प्रेम और बताती हैं दुनिया से
कि सीख लिया है प्रेम करना हमने
थोड़ा ख़ुद से

एक कविता लिख वे सजा रही हैं कोहबर में
जहाँ राम-सीता के स्वयंवर का चित्र है

मैं तुमसे हर बार एक सवाल करूँगी अबसे
कि तुमसे प्रेम करते हुए कितनी बार होगा मेरा परित्याग?

वे मेले-ठेले से लेकर मंदिर तक की यात्रा में
पूछने लगी हैं सवाल
उनके सवाल इतने बेधक हैं कि
तुम नकारते हो उसे कविता कह

इन दिनों सारे सवाल मुझे मिलते हैं कविता में
जिसे लिख रही हैं औरतें झुंड में
रख कर एक-दूसरे के कांधे पर सिर
चूम कर माथा
लग कर गले

वे लिख रही हैं सवाल
और मुस्कुरा लेती हैं तुम्हें देख कर
तुम मानो न मानो
इन औरतों ने गढ़ ली है भाषा
सवाल पूछने की
तुम्हारी तर्जनी की नोक से नहीं डरती हैं ये औरतें!

सोनी पांडे
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सोनी पांडे (जन्म : 1975) मऊ, उत्तरप्रदेश से हैं और देश की प्रतिष्ठित कवयित्रियों में से एक हैं। आपके काव्य संग्रह  मन की खुलती गिरहें और सारांश समय का अपने पाठकों के बीच है। आपसे pandeysoni.azh@gmail.com पे बात की जा सकती है।

सोनी पांडे (जन्म : 1975) मऊ, उत्तरप्रदेश से हैं और देश की प्रतिष्ठित कवयित्रियों में से एक हैं। आपके काव्य संग्रह  मन की खुलती गिरहें और सारांश समय का अपने पाठकों के बीच है। आपसे pandeysoni.azh@gmail.com पे बात की जा सकती है।

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