पितृहत्या

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कहानी : पितृहत्या

खिड़की के कांच पर हल्की खटखटाहट―
―कौन?
―चौकीदार, साहिब।
अन्दर से माँ ने झाँका―
―क्या बात है चौकीदार―आज इतनी जल्दी
―खिड़की-दरवाजे बंद कर लीजिए। मेहमानों को बाहर न निकलने दीजिए―शहर में बड़ा हल्ला है। क्या साहिब ऑफिस से आ गए?
―नहीं, पर यह तो बताओ हुआ क्या?
―साहिब, बापू गांधी को गोली मार दी गई है।
―हाय रब्बा! अभी यह बाकी था। अंधेर साई का—अरे किसने यह कुकर्म किया?
―साहिब अभी कुछ मालूम नहीं। कोई कहता है―शरणार्थी था, कोई मुसलमान बताता है―
घर में आए लुटे-पिटे उखड़े की भीड़ बरामदों में जुटी।

―अरे अब क्या कहर बरपा?
माँ ने हाथ से इशारा किया—चुप्प! यहाँ नहीं, आप लोग अन्दर चलें―
बापू गांधी को किसी हत्यारे ने गोली मार दी है।
सयानियाँ माथे पीटने लगी। हाय-हाय यह अनर्थ―अरे यह पाप किसने कमाया?
बाहर से अखबारी खबर वालों का शोर दिलों से टकराने लगा।
बापू को बिड़ला हाउस की प्रार्थना सभा में गोली मार दी गई।
बड़े-बूढे शरणार्थी धिक्कारने लगे―अरे अब डरने का क्या काम?
बाहर जाकर पूछो तो सही हत्यारा कौन था?

कुछ देर में साइकल पर आवाजें मद्धम हो दूर हो गईं कि शोर का नया रेला उभरा―
―महात्मा गांधी को गोली मारनेवाला न शरणार्थी था, न मुसलमान वह हिन्दु था। हिन्दू―
लानतें-लानतें―अरे हत्यारों ! लोग वैरियों, दुश्मनों को मारते हैं और तुम पितृ-हत्या करने चल पड़े। तुम्हारे कुल-खानदान हमेशा को नष्ट-भ्रष्ट हों―उनके अंग-संग कभी न दुबारा जगे―नालायकों अपनों को बचा न सके तो सन्त-महात्मा को मार गिराया। ऐसे पुरोधा को जिसने सयानफ से अंग्रेज को मुल्क से बाहर किया।
हाय ओ रब्बा-क्या तुम गहरी नींद सोए हुए थे।
नानी माँ जो दो दिन पहले ही बापू की प्रार्थना सभा में होकर आई थीं छाती पर हाथ मार-मार दोहराती रहीं―अरे पतित पावन उस घड़ी आप कहाँ जा छिपे थे। आपको तो बापू उम्र भर पुकारते रहे―

रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन
सीताराम।

राजाराम आप कहाँ गुम हो गए। यहाँ आपकी दुनिया बँट गई―बेटे कत्ल हो गए। आप गहरी निद्रा में सिंहासन पर विराजते रहे।
घर की पूरी भीड़―
रेडियो से शोक-ध्वनि सुनकर कलेजा मुँह को आया। बज रहा है―यह साज खून से लथपथ गांधी के लिए। हत्या-हत्यारा मुल्क दो हो गए।
पर―

हम लाहौर रेडियो से बोल रहे हैं―
रुँधे गले से अनाउंसमेंट।
हमारे महात्मा गांधी…

ऐमनाबाद से आई हमारी दादी माँ रह-रह आँखें पोंछने । सयानों की भर्राई आवाज में कहा―जो भी कहो―हजार मार-काट हुई हो पर हमारी गमी में पाकिस्तानियों ने हमसायों की-सी रोल निभाई है। ऐसे बापू को याद कर रहे हैं जैसे गांधी महात्मा उनका भी कुछ लगता था।
कमरे में सिसकियाँ तैरने लगीं

कृष्णा सोबती
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कृष्णा सोबती (१८ फ़रवरी १९२५- २५ जनवरी २०१९ ) मुख्यतः हिन्दी की आख्यायिका (फिक्शन) लेखिका थे। उन्हें १९८० में साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा १९९६ में साहित्य अकादमी अध्येतावृत्ति से सम्मानित किया गया था।

कृष्णा सोबती (१८ फ़रवरी १९२५- २५ जनवरी २०१९ ) मुख्यतः हिन्दी की आख्यायिका (फिक्शन) लेखिका थे। उन्हें १९८० में साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा १९९६ में साहित्य अकादमी अध्येतावृत्ति से सम्मानित किया गया था।

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