बे-क़रारी सी बे-क़रारी है

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ग़ज़ल : बे-क़रारी सी बे-क़रारी है

बे-क़रारी सी बे-क़रारी है
वस्ल है और फ़िराक़ तारी है

जो गुज़ारी जा सकी हम से
हम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है

निघरे क्या हुए कि लोगों पर
अपना साया भी अब तो भारी है

बिन तुम्हारे कभी नहीं आई
क्या मिरी नींद भी तुम्हारी है

आप में कैसे आऊँ मैं तुझ बिना
साँस जो चल रही है आरी है

उस से कहियो कि दिल की गलियों में
रात दिन तेरी इंतिज़ारी है

हिज्र हो या विसाल हो कुछ हो
हम हैं और उस की यादगारी है

इक महक सम्त-ए-दिल से आई थी
मैं ये समझा तिरी सवारी है

हादसों का हिसाब है अपना
वर्ना हर आन सब की बारी है

ख़ुश रहे तू कि ज़िंदगी अपनी
उम्र भर की उमीद-वारी है

जॉन एलिया

जॉन एलिया उर्दू के एक महान शायर हैं। इनका जन्म 14 दिसंबर 1931 को अमरोहा में हुआ। यह अब के शायरों में सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले शायरों में शुमार हैं। शायद, यानी, गुमान इनके प्रमुख संग्रह हैं इनकी मृत्यु 8 नवंबर 2002 में हुई। जॉन सिर्फ पाकिस्तान में ही नहीं हिंदुस्तान व पूरे विश्व में अदब के साथ पढ़े और जाने जाते हैं।

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