न जी भर के देखा न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की
उजालों की परियाँ नहाने लगीं
नदी गुनगुनाई ख़यालात की
मैं चुप था तो चलती हवा रुक गई
ज़बाँ सब समझते हैं जज़्बात की
मुक़द्दर मिरी चश्म-ए-पुर-आब का
बरसती हुई रात बरसात की
कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं
कहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की

बशीर बद्र
डॉ॰ बशीर बद्र (जन्म १५ फ़रवरी १९३६) को उर्दू का वह शायर माना जाता है जिसने कामयाबी की बुलन्दियों को फतेह कर बहुत लम्बी दूरी तक लोगों की दिलों की धड़कनों को अपनी शायरी में उतारा है। साहित्य और नाटक आकेदमी में किए गये योगदानों के लिए उन्हें १९९९ में पद्मश्री से सम्मानित किया गया है।