तुझसे तो कोई गिला नहीं है

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ग़ज़ल : तुझसे तो कोई गिला नहीं है

तुझसे तो कोई गिला नहीं है
क़िस्मत में मेरी सिला नहीं है

बिछड़े तो न जाने हाल क्या हो
जो शख़्स अभी मिला नहीं है

जीने की तो आरज़ू ही कब थी
मरने का भी हौसला नहीं है

जो ज़ीस्त को मोतबर बना दे
ऐसा कोई सिलसिला नहीं है

ख़ुश्बू का हिसाब हो चुका है
और फूल अभी खिला नहीं है

सहशारिए-रहबरी में देखा
पीछे मेरा काफ़िला नहीं है

इक ठेस पे दिल का फूट बहना
छूने में तो आबला नहीं है

परवीन शाकिर
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सैयदा परवीन शाकिर (1952 – 1994), एक उर्दू कवयित्री, शिक्षक और पाकिस्तान की सरकार की सिविल सेवा में एक अधिकारी थीं। इनकी प्रमुख कृतियाँ खुली आँखों में सपना, ख़ुशबू, सदबर्ग, इन्कार, रहमतों की बारिश, ख़ुद-कलामी, इंकार(१९९०), माह-ए-तमाम (१९९४) आदि हैं।

सैयदा परवीन शाकिर (1952 – 1994), एक उर्दू कवयित्री, शिक्षक और पाकिस्तान की सरकार की सिविल सेवा में एक अधिकारी थीं। इनकी प्रमुख कृतियाँ खुली आँखों में सपना, ख़ुशबू, सदबर्ग, इन्कार, रहमतों की बारिश, ख़ुद-कलामी, इंकार(१९९०), माह-ए-तमाम (१९९४) आदि हैं।

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