मातृभाषा की मौत

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कविता कोश

माँ के मुँह में ही
मातृभाषा को क़ैद कर दिया गया
और बच्चे
उसकी रिहाई की माँग करते-करते
बड़े हो गए।

मातृभाषा ख़ुद नहीं मरी थी
उसे मारा गया था
पर, माँ यह कभी जान सकी।

रोटियों के सपने
दिखाने वाली संभावनाओं के आगे
अपने बच्चों के लिए उसने
भींच लिए थे अपने दाँत
और उन निवालों के सपनों के नीचे
दब गई थी मातृभाषा।

माँ को लगता है आज भी
एक दुर्घटना थी
मातृभाषा की मौत।

जसिंता केरकेट्टा

जसिंता केरकेट्टा का जन्म 3 अगस्त 1983 में झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले में सारंडा जंगल से सटे मनोहरपुर प्रखंड के खुदपोस गांव में हुआ. 2016 में पहला काव्य-संग्रह ‘अंगोर’ हिंदी-अंग्रेजी में आदिवाणी कोलकाता से प्रकाशित. अंगोर का जर्मन संस्करण हिंदी-जर्मन में प्रकाशित. देश की कई साहित्यिक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित. विभिन्न कवियों के कविता-संग्रहों में भी इनकी कविताएं शामिल, इनमें शतदल, रेतपथ, समंदर में सूरज, कलम को तीर बनने दो माटी आदि स्मरणीय हैं. 2017 में प्रभात खबर अखबार द्वारा अपराजिता सम्मान से सम्मानित. 2014 में आदिवासियों के स्थानीय संघर्ष पर उनकी एक रिपोर्ट पर बतौर आदिवासी महिला पत्रकार उन्हें इंडिजिनस वॉयस ऑफ एशिया का रिक्गनिशन अवॉर्ड, एशिया इंडिजिनस पीपुल्स पैक्ट, थाईलैंड की ओर से दिया गया. संप्रति गांव में सामाजिक कार्य के साथ कविता सृजन कर रही हैं.

जसिंता केरकेट्टा का जन्म 3 अगस्त 1983 में झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले में सारंडा जंगल से सटे मनोहरपुर प्रखंड के खुदपोस गांव में हुआ. 2016 में पहला काव्य-संग्रह ‘अंगोर’ हिंदी-अंग्रेजी में आदिवाणी कोलकाता से प्रकाशित. अंगोर का जर्मन संस्करण हिंदी-जर्मन में प्रकाशित. देश की कई साहित्यिक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित. विभिन्न कवियों के कविता-संग्रहों में भी इनकी कविताएं शामिल, इनमें शतदल, रेतपथ, समंदर में सूरज, कलम को तीर बनने दो माटी आदि स्मरणीय हैं. 2017 में प्रभात खबर अखबार द्वारा अपराजिता सम्मान से सम्मानित. 2014 में आदिवासियों के स्थानीय संघर्ष पर उनकी एक रिपोर्ट पर बतौर आदिवासी महिला पत्रकार उन्हें इंडिजिनस वॉयस ऑफ एशिया का रिक्गनिशन अवॉर्ड, एशिया इंडिजिनस पीपुल्स पैक्ट, थाईलैंड की ओर से दिया गया. संप्रति गांव में सामाजिक कार्य के साथ कविता सृजन कर रही हैं.

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