कविता में वाक्य विन्यास

1 min read
कविता में वाक्य विन्यास

कहते हैं कविता कम शब्दों में बहुत कुछ कहती है. शायद इसलिए इसके सभी तत्त्व महत्वपूर्ण माने गए हैं. हर शब्द, हर छवि महत्वपूर्ण है. वाक्य विन्यास की भूमिका भी इस लिहाज़ से एहम मानी जाती है. हालाँकि एक मत यह भी है कि इसका प्रयोग सर्वाधिक गद्य में किया जाता रहा है और वहीं उपयुक्त भी है. वाक्य विन्यास से तात्पर्य शब्दों की व्यवस्था, उसके क्रम से है. शब्द क्रम (कर्ता+कर्म+क्रिया) को कलात्मत्क प्रभावों को प्राप्त करने के लिए आपस में बदला दिया जाता है. उदाहरण के लिए, ‘मैं जा रहा हूँ’ की जगह ‘जा रहा हूँ मैं’ का लिखा जाना.

कविता में भी कवियों को व्याकरण के विरुद्ध जा कर ऐसे प्रयोग करते हुए देखा जा सकता है मगर इसका उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ शब्दातीत जाने का होता है. प्रभाव पैदा करने के लिए सौंदर्यवादी शब्दों की जगह वाक्यों की संरचना ले लेती है. हालाँकि इसके अपने ख़तरे हैं मसलन पाठक अगर इस बदले हुए संरचना के लिए तैयार न हो तो अर्थ भ्रमित भी कर सकते हैं. कई अवसरों पर इस प्रयोग की असफलता महसूस की जा सकती है जहाँ पाठक रचना से दूर हो जाता है.

वाक्य विन्यास को ले कर विवाद भी हैं जैसे विभक्तियों का संज्ञा या सर्वनाम के साथ लिखा जाना उचित है या नहीं. उदाहरण के लिए, ‘उसने मुझको पुकारा’. यहाँ इस वाक्य को इस तरीके से भी लिखा जा सकता था – ‘उस ने मुझ को पुकारा’. कई विद्वानों का मानना है कि संज्ञा या सर्वनाम का विभक्तियों के साथ लिखा जाना अनुचित है. वहीं कई इसे उचित भी मानते हैं. हालाँकि दोनों पक्षों का ये स्पष्ट मानना है कि वाक्य संरचना में एकरूपता होनी चाहिए, मत जिसपे भी बने.

अनुवाद करते हुए भी वाक्य संरचना का ध्यान रखा जाना जरुरी है जिस से कि मूल भाषा में बरते गए नियमों के साथ खिलवाड़ न हो. यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि वाक्य विन्यास में बहुत ज्यादा प्रयोग मूल रचना, उसकी खुशबू, उसके मूल भाव को निष्क्रिय कर सकते हैं.

वाक्य विन्यास के सबसे सुन्दर उदाहरण आधुनिक कविता में देखने को मिलते हैं, विशेष रूप से अज्ञेय, मुक्तिबोध और बाद के कवियों की कविताओं में. विन्यास का आधार भाव, पदबंध, ध्वनि इत्यादि हो सकते हैं. उदाहरण के लिए केदारनाथ सिंह की कविता ‘पानी में घिरे हुए लोग’ का ये अंश देखें  –

सिर्फ उनके अन्दर
अरार की तरह
हर बार कुछ टूटता है
हर बार पानी में कुछ गिरता है
छपाक……… छपाक……..

यहाँ वाक्यों के बीच का अंतराल और एक ख़ास शब्द ‘छपाक’ की ध्वनि पर कवि का ज़ोर देना ध्यान आकृष्ट करता है. यहाँ कवि कविता को न सिर्फ प्रभावशाली बनाने का प्रयास कर रहा है बल्कि वो अपने पाठक को बाढ़ से होने वाली त्रासदी की तरफ भी इंगित कर रहा है जहाँ वो ख़ुद भी ठहर कर सोचने पे मजबूर है.

ठीक इसी प्रकार, एक वाक्य में एक शब्द या अधूरे वाक्यों का प्रयोग भी कविताओं में खूब हुआ है जहाँ एक शब्द एक पूरे वाक्य का अर्थ देता है. उदाहरण के लिए विक्रांत की कविता का ये अंश –

अभाव, प्रभाव
अकस्मात, अभिशप्त, अकारण
बुद्धि, विद्या
इन्द्रिय, मन
हाहाकार
अंतःकरण
द्रव्य, गुण, कर्म
अंशी, शक्ति, सादृश्य
भूत, वर्तमान, भविष्य
सामान्य, विशेष, विशिष्ट
जलते हैं
डूबते हैं
ग्रहण
लगते हैं
बदलते हैं
हाय, नियति !

यहाँ कवि जीवन की उस शाश्वत सत्य की तरफ इशारा कर रहा है जहाँ सब कुछ नश्वर है, क्षणभंगुर है. एक-एक शब्द मनुष्य की अवस्थाओं, उसकी उपलब्धियों और उसकी त्रासदियों का वर्णन है.

किसी भाव, क्रिया अथवा शब्द विशेष को पाठकों के ध्यान में लाने के लिए भी कई बार कवि वाक्य विन्यास में प्रयोग करते दिखते हैं, उदाहरण के लिए पाश की कविता ‘घास’, ‘सबसे ख़तरनाक’ और ‘भारत’ को लिया जा सकता है.

सबसे ख़तरनाक होता है
मुर्दा शांति से भर जाना
तड़प का न होना
सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना

यहाँ मनुष्य के जीवन में ‘सबसे ख़तरनाक होने’ की असल अवस्थाओं और स्थितियों की तरफ ध्यान आकृष्ट करने के लिए ऐसे शब्द क्रम का सहारा लिया गया है जहाँ मुख्य भाव पहले पद में है और बाद के पदों में उसकी व्याख्या.

वाक्य विन्यास किसी भी कविता को एक नया आयाम तो देता ही है साथ में यह रचनाकार को प्रयोग की दृष्टि से भी खुला आसमान देता है. अर्थ अगर ठीक-ठीक अपने पाठकों तक पहुँच जाएँ और व्याकरण की मूल भावना के साथ खिलवाड़ न हो तो ऐसे प्रयोग स्वागतयोग्य हैं.

कुमार राहुल
+ posts

कुमार राहुल, ‘उम्मीदें’ वेब पत्रिका के संपादक हैं. आपसे kumarrahul9699@gmail पे बात की जा सकती है.

नवीनतम

फूल झरे

फूल झरे जोगिन के द्वार हरी-हरी अँजुरी में भर-भर के प्रीत नई रात करे चाँद की

पाप

पाप करना पाप नहीं पाप की बात करना पाप है पाप करने वाले नहीं डरते पाप

तुमने छोड़ा शहर

तुम ने छोड़ा शहर धूप दुबली हुई पीलिया हो गया है अमलतास को बीच में जो

कोरोना काल में

समझदार हैं बच्चे जिन्हें नहीं आता पढ़ना क, ख, ग हम सब पढ़कर कितने बेवकूफ़ बन

भूख से आलोचना

एक मित्र ने कहा, ‘आलोचना कभी भूखे पेट मत करना। आलोचना पेट से नहीं दिमाग से