चाहे नक्काशीदार एंटीक दरवाज़ा हो
या लकड़ी के चिरे हुए फट्टों से बना
उस पर खूबसूरत हैंडल जड़ा हो
या लोहे का कुंडा
वह दरवाज़ा ऐसे घर का हो
जहाँ माँ बाप की रज़ामंदी के बग़ैर
अपने प्रेमी के साथ भागी हुई बेटी से
माता पिता कह सकें –
‘जानते हैं, तुमने ग़लत फ़ैसला लिया
फिर भी हमारी यही दुआ है
ख़ुश रहो उसके साथ
जिसे तुमने वरा है
यह मत भूलना
कभी यह फ़ैसला भारी पड़े
और पाँव लौटने को मुड़ें
तो यह दरवाज़ा खुला है तुम्हारे लिए’
बेटियों को जब सारी दिशाएँ
बंद नजर आएँ
कम से कम एक दरवाज़ा हमेशा खुला रहे उनके लिए !
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सुधा अरोड़ा
सुधा अरोड़ा का जन्म लाहौर (पाकिस्तान) में 4 अक्टूबर सन् 1946 में हुआ, एक लेखिका है। उनकी उच्च शिक्षा कलकत्ता विश्वविधालय से हुई। इसी विश्वविधालय के दो कॉलेजों में उन्होंने सन् 1969 से 1971 तक अध्यापन कार्य किया। सुधा अरोड़ा कथा साहित्य में एक चर्चित नाम है।